हरिद्वार, जिसे धर्म की नगरी कहा जाता है वहां से आयी एक खबर ने सिर्फ उस पवित्र नगर को नहीं, पूरे समाज की आत्मा को झकझोर दिया है।एक ऐसी महिला (अनामिका शर्मा) जो भाजपा की पूर्व ज़िला पदाधिकारी रही है वह अपनी ही नाबालिग बेटी की अस्मिता को सत्ता की सीढ़ी बनाने में लगी थी।
एक नाबालिग बेटी ने अपनी ही मां पर आरोप लगाया कि वह उसे बार-बार यौन शोषण के लिए अपने प्रेमी व उसके कई दोस्तों के हवाले करती थी l यह एक सुनियोजित सौदा, जहाँ सत्ता की भूख ने ममता को निगल लिया, और राजनीतिक चढ़ाव के लिए माँ अपनी बेटी की लाश पर पाँव रखकर चढ़ना चाहती थी।एक माँ अपनी नाबालिग बेटी की रक्षक नहीं बनी, बल्कि दलाल बन गई। और यह सब हुआ “बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओं “जैसे खोखले नारों वाली पार्टी की छांव में।
अब सवाल उठता है कि क्या ये वही पार्टी नहीं जो “संस्कार” और “भारतीयता” की परिभाषा सिखाने का दावा करती है?क्या यही ‘महिला सशक्तिकरण’ है, जहां एक महिला नेत्री हो और अपनी नाबालिग बेटी को नरक में धकेल दे?
यह उत्तराखण्ड बीजेपी में कोई अकेला मामला नहीं है ,चाहे अंकिता भण्डारी हत्याकाण्ड के अभियुक्त या तथाकथित वीआईपी हो,ज्वालापुर ,द्वाराहाट विधानसभाओं के पूर्व विधायक हो या उनके संगठन से जुड़े कई पदाधिकारी पर महिलाओं के यौन शोषण के आरोप लगे और कई जेल में है l
हरिद्वार की इस बेटी की चीख सिर्फ उसके घर की दीवारों तक सीमित नहीं,वह चीख रही है पूरे समाज से, राजनीति से, और उस ढोंग से जो महिला सुरक्षा के नाम पर चुनावी भाषण देता है।
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