विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट रविवार 17 नवंबर को सेना के बैंड की भक्तिमय धुनों के साथ विधि- विधान और जय बदरी विशाल के जयकारों के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं। धाम की यात्रा बंद होने के साथ ही उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा का भी विधिवत समापन हो गया है। मंदिर के कपाट बंद होने के मौके पर 10 हजार श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए।
बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया रविवार देर शाम शयन आरती के साथ शुरू हुई। मंदिर में रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट, अमित बंदोलिया ने कपाट बंद करने की प्रक्रियाओ को परंपराओं के अनुसार पूर्ण किया। इस दौराम श्री उद्धव जी एवं कुबेर जी के चल विग्रह मंदिर के गर्भ गृह से बाहर लाए गए। जिसके पश्चात रावल अमरनाथ नंबूदरी स्त्री रूप धारणकर मां लक्ष्मी को मंदिर गर्भ गृह में विराजममान किया और भगवान बदरीविशाल को माणा महिला मंगल दल की ओर से बुना गया घृत कंबल ओढाया गया। इन सभी प्रक्रियाओं को सम्पन्न करने के बाद रात्रि 9 बजकर 7 मिनट पर रावल अमरनाथ नंबूदरी ने श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए।
बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के मौके पर श्री बदरीनाथ पुष्प सेवा समिति ऋषिकेश की ओर से मंदिर को 15 कुंतल गेंद के फूलों से सजाया गया है। वहीं जहां देर सायं से मंदिर में कपाट बंद करने की धार्मिक परंपराओं के साथ पूजा अर्चना की गई। वहीं मंदिर के प्रांगण में स्थानीय लोक कलाकारों तथा महिला मंगल दल बामणी, पांडुकेश्वर की ओर से लोकनृत्य और जागर की प्रस्तुति दी। धाम में सेना की ओर से श्रद्धालुओं के लिए भंडारों का आयोजन किया है।
बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने बताया कि इस यात्रा वर्ष श्री बदरीनाथ धाम यात्रा का सफल समापन हो रहा है सवा चौदह लाख से अधिक संख्या में तीर्थयात्रियों ने बदरीनाथ धाम के दर्शन किये हैं।
बीकेटीसी मीडिया प्रभारी हरीश गौड़ ने बताया कि 17 नवंबर रविवार रात्रि को भगवान बदरीविशाल के कपाट बंद होने के बाद आज सुबह 10 बजे श्री उद्धवजी श्री कुबेर जी एवं रावल जी सहित आदि गुरू शंकराचार्य की गद्दी योग बदरी पांडुकेश्वर प्रस्थान करेंगे। श्री उद्धव जी एवं कुबेर जी शीतकाल में पांडुकेश्वर प्रवास करेंगे और आज पांडुकेश्वर प्रवास के बाद 19 नवंबर को आदि गुरू शंकराचार्य की गद्दी रावल धर्माधिकारी वेदपाठी सहित श्री नृसिह मंदिर जोशीमठ प्रस्थान करेगी। इसके बाद योग बदरी पांडुकेश्वर तथा श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में शीतकालीन पूजायें भी शुरू हो जायेगी।
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