उत्तराखंड बीजेपी ने चार धाम यात्रा शुरुआत के दिन, कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली को, राज्य विरोधी और पावन कार्यों में विघ्न संतोषी रवैया बताया है। प्रदेशाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने कहा कि कांग्रेस का इस मुद्दे को उठाना, बिल्ली के सौ चूहे खाकर हज करने जैसा है। लिहाजा उनमें थोड़ी सी भी नैतिकता शेष है तो राज्यहित और देशहित में उन्हें इस कार्यक्रम को रद्द करना चाहिए और यात्रा में सहयोग के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस के अभियान की टाइमिंग और औचित्य पर कई गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि सभी जानते हैं कि चार धाम यात्रा उत्तराखंड की आर्थिक रीढ़ का काम करती है।
लिहाजा जब कल से इस पावन यात्रा का शुभारंभ हो रहा है तो ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी का राजनैतिक कार्यक्रम करना उनके नकारात्मक रुख को स्पष्ट करता है। कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती है कि राज्य का विकास जारी रहे और उसकी देवभूमि छवि की कीर्ति में वृद्धि हो। इसलिए वह यात्रा व्यवस्था में जुटे प्रशासन और आम लोगों के प्रयासों में विघ्न डालने के लिए यह कार्यक्रम करना चाहते हैं। विगत वर्ष में भी यात्रा प्रभावित करने के लिए कांग्रेस ने इसी तरह के अनेकों राजनैतिक प्रपंच किए थे। जो यात्रा के अंतिम दिनों तक केदारनाथ प्रतिष्ठा यात्रा के रूप में जारी रहे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का ये प्रयास और भी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हो जाता है कि ये सब उस समय किया जा रहा हो जब देश पहलगाम हमले से दुख और आक्रोश में है। वो पीएम मोदी के नेतृत्व में दुश्मनों को करारा जवाब देने की तैयारी में जुटा हुआ है। लेकिन कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति नॉन स्टॉप जारी है।
उन्होंने कांग्रेस पार्टी के नेताओं से आग्रह किया कि यदि उनमें थोड़ी सी भी नैतिकता बची हो तो वह यात्रा को देखते हुए प्रदेश हित में अपने राजनैतिक कार्यक्रम को स्थगित कर दे। बेहतर हो कि उनके कार्यकर्ता भी यात्रा प्रबंधन में सहयोग और तीर्थयात्रियों की मदद के लिए आगे आएं।
उन्होंने कहा कि आज पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, तीव्र गति से विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में एकजुटता से बढ़ रहा है। वहीं अपने नकारात्मक रुख के चलते, कांग्रेस पार्टी और उनकी सहयोगी पार्टियों को अपना राजनैतिक भविष्य शून्य की तरफ खिसकता नजर आ रहा है। यही वजह है कि वे हताशा निराशा में लगातार देश में भ्रम और झूठ फैलाने की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की प्रस्तावित संविधान बचाओ यात्रा भी, देश समाज को बरगलाकर, अराजक माहौल पैदा कर, जनता के आत्मविश्वास को कमजोर करने की इसी साजिश का हिस्सा है। अभिव्यक्ति की आजादी, प्रत्येक पार्टी को अपनी बात रखने का अवसर देती है,
उन्होंने कांग्रेस के इस आंदोलन के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुए कहा, सबसे हैरानी की बात यह भी है कि संविधान बचाने का दावा वह पार्टी जिसके हाथ लोकतंत्र और संविधान के खून से रंगे हुए हैं। देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में सबसे काला अध्याय है यदि कोई है तो वह है आपातकाल, जिसके रचयिता कोई और नहीं कांग्रेस पार्टी है। देश ने देखा कि किस तरह हाईकोर्ट के निर्णय से खुद का सिंहासन हिलते देख तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के लोकतंत्र को बंधक बनाकर, आपातकाल थोप दिया था। संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका और पत्रकारिकता सभी का गला घोंटने का प्रयास किया।
वहीं कांग्रेस द्वारा संविधान कुचलने का दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग को बताया। कहा, अनुच्छेद 356 को कांग्रेस खिलौने की तरह इस्तेमाल करती रही है। उसके राजनीतिक फायदे के लिए बार -बार इसका इस्तेमाल किया। देश में अब तक 124 बार इस धारा का उपयोग हुआ जिसमें अकेले कांग्रेस पार्टी और उनके सहयोग से चली सरकारों ने 102 बार चुनी हुई सरकारों के दमन में इसका दुरुपयोग किया। वहीं संविधान से छेड़छाड़ कर उसे कमजोर करने का तो उसका लंबा और दागदार इतिहास रहा है।
आपातकाल में कांग्रेस ने संसद की अवधि भी पांच से बढ़ा कर छह साल कर दी थी और संविधान में बदलाव का ऐसा प्रस्ताव लाया गया था जिसमें इंदिरा गांधी को ताउम्र प्रधानमंत्री बनाने और न्यायपालिका को सरकार की नीतियों के साथ चलने का प्रस्ताव लाया गया था।
संविधान की मूल प्रस्तावना में छेड़छाड़ करते हुए उसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों को जोड़ा गया। संविधान के विपरीत जाकर जम्मू-कश्मीर में 370 लागू कर उसे देश से अलग दिखाने का पाप किया। एक देश में दो संविधान, दो विधान और दो निशान की इसी भावना ने कश्मीर को आतंक की भट्टी में झोंके रखा।
उन्होंने तुलनात्मक रूप में कहा, हमने बहुमत का उपयोग मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के श्राप और वक्फ बोर्ड की माफियागिरी से आजाद करने के लिए किया। लेकिन कांग्रेस ने राजीव गांधी को मिले दो तिहाई बहुमत का दुरुपयोग पीड़ित बुजुर्ग महिला शाहबानों के साथ अन्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने में किया। पीएम और पीएमओ को कंट्रोल करने के लिए सोनिया गांधी की अध्यक्षता में नेशनल एडवाइजरी काउंसिल बनाकर करोड़ों लोगों के जनमत का अपमान किया गया। देश दुनिया ने देखा कैसे लोकतंत्र में भी रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाई जाती है। महत्वपूर्ण उच्चस्तरीय विदेशी नेताओं और राजनयिकों के साथ बैठकों और मुलाकात में असंवैधानिक रूप में सोनिया गांधी पीएम को सुपरसीड करती थी।
उन्होंने तंज कसा कि राहुल गांधी संविधान बचाने की बात करते हैं जबकि इन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी ही सरकार के अध्यादेश फाड़ कर संवैधानिक व्यवस्था का सरेआम अपमान किया था। अनेकों राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का सार्वजनिक अपमान इनके नेताओं द्वारा किया गया। ये लोग तो अपनी पार्टी के गांधी परिवार के लिए अलग कानून की बात कहने वाले लोग हैं।
कांग्रेस संविधान बचाने की बात करेंगे जबकि मोदी सरकार द्वारा बाबा साहेब अंबेडकर और संविधान के सम्मान में संविधान दिवस मनाने की घोषणा का विरोध किया। इतना ही नहीं बाबा साहब की 125 वीं जयंती का भी विरोध किया। संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा और निष्पक्षता पर पर सबसे अधिक गैरजिम्मेदाराना सवाल करने वाले यही लोग हैं। ये चुनाव में हार का ठीकरा ईवीएम मशीन पर फोड़ते है। ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लगाते हैं और जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को साबित करने की चुनौती दी तो कोई भी वहां नहीं पहुंचता है।
राहुल गांधी देश विदेश में संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम और देश की छवि खराब करने की यात्रा पर आज भी जारी हैं। हाल में अमेरिकी ब्राउन यूनिवर्सिटी में चुनाव प्रक्रिया पर झूठे आरोप सबने देखें हैं। भट्ट ने कहा कि दरअसल कांग्रेस का असल मकसद है, न्यायपालिका और चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली पर भ्रम और छूट फैलाकर लोगों के संवैधानिक संस्थाओं के प्रति विश्वास को कमजोर करना। इसी तरह CAG, ED, CBI कोई शीर्ष जांच एजेंसी ऐसी नहीं रही जिस पर कांग्रेस नेताओं द्वारा झूठे आरोप नहीं लगाए गए हो। सबसे आपत्तिजनक है कि कांग्रेस ने राजनैतिक विरोध के लिए सेना को भी नहीं बख्शा। उन्होंने इस दौरान कांग्रेस सरकारों द्वारा संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ किए गए महत्वपूर्ण घटनाक्रम का उल्लेख भी किया। जिसके क्रम में बताया, 1949 में कांग्रेस सरकार ने धारा 370 लागू कर जम्मू कश्मीर को देश की मुख्य धारा से अलग करने का पाप किया, वर्ष 1954 में संविधान की मूल भावना के खिलाफ, मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए वक्फ कानून लेकर आए। जिसमें 2013 में संशोधन कर असीमित अधिकार देने का पाप किया, 1975 में हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया गया। जिसके तहत देश में लोगों के मौलिक अधिकार को खत्म कर प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगाते हुए विपक्ष के नेताओं को जेल में डाला गया। आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकारों ने ऐसे ऐसे संशोधन किया जो आज लागू होते तो लोकतंत्र का कोई मायने नहीं रहता। जैसे सांसद के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़कर 6 वर्ष करना इंदिरा गांधी को आजीवन प्रधानमंत्री बनाए रखना न्यायिक समीक्षा का अधिकार बंद करना वर्ष 1977 में तो 42 वें संशोधन से कांग्रेस सरकार ने संविधान की मूल संरचना को ही बदल दिया था, संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़कर। राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो 1985 में एक मुस्लिम बुजुर्ग देवा महिला को उसका अधिकार ना मिले उसके लिए, कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रचंड बहुमत का दुरुपयोग किया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही संविधान संशोधन से पलट दिया। 1988 में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए मानहानि विरोधी कानून पेश किया गया वह बात और है कि विरोध के चलते इसे वापस ले लिया गया। अब मनमोहन सरकार के कार्यकाल का जिक्र करें तो वक्त संशोधन 2013 से इन्होंने वक्फ बोर्ड को पूरी तरह भू माफिया बोर्ड में बदलने का कार्य किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नियंत्रित करने के लिए सलाहकार समिति बनाई गई और सुपर पीएम के रूप में सोनिया गांधी को उसे पर काबिज किया गया जो भारतीय लोकतंत्र को अपमानित करने का निर्णय था। संविधान और संवैधानिक पदों संस्थाओं के अपमान का तो कांग्रेस पार्टी का लंबा इतिहास रहा है जिसके तहत इन्होंने शीर्ष पद पर बैठे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भी नहीं बख्शा। 1951 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में जाने से रोका गया, एपीजे अब्दुल कलाम को 2006 में विदेश दौरे से वापस बुलाकर अध्यादेश पर हस्ताक्षर कराया, वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को तत्कालीन नेता विपक्ष अधीरंजन चौधरी ने अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया।
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