बीजेपी की साख का सवाल बन चुका केदारनाथ उपचुनाव पार्टी संगठन और सरकार की टेंशन बढ़ा रहा है। केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव की घोषणा होते ही यहां से भाजपा के टिकट के दावेदारों के बीच शीतयुद्ध से हालात हो गये हैं। एक ओर कुलदीप ने सभाएं कर संदेश देना शुरू कर दिया है कि भाजपा टिकट दे या न दे ंतो वो चुनाव लड़ेंगे। तो दूसरी ओर आशा नौटियाल और ऐश्वर्या के बीच ‘शीतयुद्ध‘ सार्वजनिक हो गया है।
भाजपा सदस्य बनाने को लेकर ऐश्वर्या ने खुला ऐलान कर दिया है कि टिकट पर उनका दावा है। वो नंबर एक हैं और आश नौटियाल को नंबर दो घोषित कर दिया है। भाजपा में अब तक परम्परा रही है कि सिंपेथी वोट हथियाने के लिए मृत विधायक के परिजन को ही टिकट दिया जाता है। ऐश्वर्या अब तक राजनीति में एक बड़ा शून्य थी लेकिन विधायक मां शैलारानी के निधन के बाद उसने स्वयं को शैलपुत्री घोषित कर दिया है। वहीं, शैलारानी रावत और कुलदीप रावत के समर्थकों का एक बड़ा गुट ऐश्वर्य की दावेदारी का विरोध कर रहा है।
उधर, आशा नौटियाल जानती हैं कि यदि ऐश्वर्या को भाजपा का टिकट मिल जाता है तो आशा की न केवल राजनीतिक जमीन सरक जाएगी बल्कि भाजपा से उनका बोरिया बिस्तर भी उठ जाएगा। 2017 में भी लगभग ऐसी ही स्थिति थी। भाजपा ने शैलारानी को टिकट दिया और आशा निर्दलीय खड़ी हो गयी। नतीजा केदारनाथ सीट हार गयी। तब से ही शैला और आशा के बीच जबरदस्त द्वंद था, 2022 में भाजपा ने किसी तरह से आशा को मना लिया था, तो भाजपा जीत गयी। सदस्यता अभियान की आड़ में ऐश्वर्या ने अब आशा नौटियाल के पुराने जख्मों पर नमक छिड़क दिया है कि वह नंबर एक हैं।
ऐसे में यदि आशा या एश्वर्य को टिकट मिला तो भाजपा मंे जबरदस्त भीतरघात होगा। ऐश्वर्य की लांबिग भूपेश उपाध्याय कर रहे हैं। भूपेश विजय बहुगुणा खेमे से हैं और सौरभ के निकटस्थ। उधर, कुलदीप के बागी होने की 100 प्रतिशत संभावनाएं हैं। इस परिस्थिति में भाजपा के लिए तीनों को टिकट गले की हड्डी बन गया है। ऐसे मंें यदि भाजपा को पराजय से बचना है तो कोई ऐसा चेहरा मैदान में उतारना होगा जो तीनों नेताओं को शांत कर सके या उनके विरोध को न्यूट्रीलाइज कर सके। साथ ही उसकी छवि जनता के बीच अच्छी हो और उसका फलक महज केदारनाथ सीट तक सीमित न हो। यह तय है कि यदि इन तीन में से किसी को भी चुनाव मैदान में उतारा जाएगा तो बदरीनाथ उपचुनाव की पुनर्वृत्ति हो सकती है।
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