16 September 2025

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हरीश रावत ने दिल खोलकर की जौनसारी फिल्म मेरे गांव की बाट की तारीफ

हरीश रावत ने दिल खोलकर की जौनसारी फिल्म मेरे गांव की बाट की तारीफ

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहली जौनसारी फिल्म मेरे गांव की बाट की दिल खोलकर तारीफ की है। हरीश रावत ने खुद बड़े पर्दे पर ये पूरी फिल्म देखी। पूर्व सीएम ने कहा कि मेरे गांव की बाट उत्तराखंड की फिल्म इंडस्ट्री के भविष्य के लिए बेहद सकारात्मक संदेश है। हरीश रावत ने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा

“#मेरे_गांव_की_बाट”, सारे उत्तराखंड के दर्द का सफल फिल्मांकन भी है और समाधान भी है। जौनसार क्षेत्र की सांस्कृतिक, प्राकृतिक छटा के साथ उच्च मानवीय भावनाओं को बहुत सरल भाव से प्रदर्शित करने वाली यह फिल्म सारे #उत्तराखंड के लिए देखने लायक है। फिल्म का कथानक और संवाद बहुत सहज और सरल है तथा तकनीकी दृष्टि से विभिन्न दृश्यों, घटनाओं व संवादों का फिल्मांकन दक्षतापूर्वक किया गया है‌। फिल्म के माध्यम से जौनसारी समाज के खान-पान, रहन-सहन, भवन शैली, परस्पर प्रेम, त्याग और आदर आधारित परंपरा को सफलता पूर्वक उकेरा गया है। ताई की रसोई में पालती मारकर फिल्म के नायक को पूरे स्वाद के साथ खेंडा (बाड़ी) खाते देखना रोमांचक है। मुझे बताया गया है कि फिल्म के 90 प्रतिशत पात्रों ने पहली बार फिल्मी कैमरे का सामना किया है। मगर अपनी भाषा-बोली में उनके संवाद और भाव भंगिमाएं में पूर्णतः स्वाभाविक लगती है। बच्चों से लेकर दो प्रौढ़ कुंवारों का रोल कहीं से भी थोपा हुआ नहीं लगता है। तांदी और हारूल के बोल और नृत्य की मधुरता मेरे कानों में 24 घंटे बाद भी गूंज रही है और मन को गुदगुदा रही है। नायक और नायिका, दोनों का अभिनय बहुत सहज और प्रशंसनीय है। अपने गांव आते वक्त जिस तन्मय भाव से नायक अपने गांव की बाट का गाना गाता है, वह गाना और भाव हमारे उन भाई-बहनों को अपने गांव की तरफ लाने में प्रेरक हो सकते हैं। फिल्म जौनसार की संयुक्त परिवार की परम्परा को सशक्त तरीके से उभारती है और आज के युग में जब शादी-विवाह की बहुत सारी परंपराएं विलुप्त हो रही हैं, उस समय जौनसारी समाज में प्रचलित नारी के सम्मान में आधारित विवाह परम्परा का महत्व बहुत अच्छी तरीके से फिल्म में दर्शाया गया है। नारी सम्मान का सर्वोच्च स्वरूप उस समय प्रत्येक दर्शक को आदर पूर्वक भावुक कर देता है, जब अपनी जिद पर एक बहुत पुरानी शत्रुता को आधार बनाकर नायिका का पिता अपनी पुत्री का विवाह नायक से करने से इनकार कर देता है।

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जब फिल्म दुखांत अंत की ओर जाती दिख रही थी तो नायक की मां अपने सर के वस्त्र ढांटू को निकालती है और नायिका के हटी पिता के सम्मुख फैलाकर उनसे पुरानी दुश्मनी को भूलने और उनकी पुत्री का हाथ मांगती है तो नायिका का पिता अपनी हट छोड़कर द्रवित भाव से बोले कि तुमने ढांटू मेरे सामने निकालकर मुझे कुछ कहने लायक नही छोड़ा है। अब कोई जिद नहीं है, कोई दुश्मनी नहीं है। मैं, खुशी-खुशी अपनी पुत्री को तुम्हें सौंपता हूं। जौनसारी समाज में महिला सम्मान की परिकाष्ठा का यह दृश्य आज आधुनिकता में बह रहे श्रेष्ठ समाजों के लिए एक उदाहरण है। यह फिल्म हमारे सारे राज्य भर में देखी जानी चाहिए। मैने गांधी फिल्म के बाद पहली फिल्म है जो पूरी देखी है। मैं, #जौनसार के एक होनहार नौजवान सामाजिक कार्यकर्ता #श्याम_सिंह_चौहान का बहुत आभारी हूं कि उन्होंने मुझे इस फिल्म को देखने के लिए प्रेरित किया और अब मेरे मन में भाव आ रहा है कि मैं, #गढ़_कुमाऊं फिल्म को भी देखूं। हमारी भाषा-बोली में बन रही फिल्में अब कथानक के साथ साथ तकनीकी दक्षता में भी प्रतिस्पर्धात्मक हो रही है, यह अच्छा डेवलपमेंट है।