पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया है। इसके साथ ही 2024 के चुनावी समर में उतरने के भी संकेत दिए हैं। हरीश रावत ने साफ किया है कि पीछे हटने और उत्तराखंड की राजनीति से अलग होने का कोई सवाल ही नहीं है। हरदा ने कहा है कि धीरे धीरे ही सही मगर वो आगे बढ़ते रहेंगे। हरीश रावत राजनीति के मैदान में हार पर हार मिलने के बाद भी डटे रहने की बात कही है। हरदा ने अपनी परेशानियों और बीजेपी की सियासी साजिशों का भी जिक्र किया है।
हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपनी बात शेयर करते हुए कहा है मैं कल अर्थात दिनांक-27 जुलाई, 2023 को माननीय #हाईकोर्ट की चौखट पर माथा टेकूंगा। क्षमता व योग्यता भर हमारे अधिवक्तागण, #CBI के दुष्प्रचार का खंडन करेंगे और न्याय प्राप्त करेंगे।
मैं भाग्य या दुर्भाग्य से एक अजीब स्थिति में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना। मैंने शारीरिक व मानसिक कष्ट के साथ उच्च सत्ता की कई प्रताड़नाएं झेली। न्याय की चौखट पर केंद्र की दमनात्मक शक्ति की पराजय हुई। शायद पहली। आज मुझे एक निवर्तमान मुख्यमंत्री के रूप में लगभग 6 वर्ष से भी अधिक समय हो चुका है। यदि मेरे विरूद्ध कहीं दूर से भी एक अनियमितता, भ्रष्टाचार या स्व लाभ के लिए उठाया गया कदम मिल जाता तो मेरे दोस्त मेरा इतना चेहरा बिगाड़ देते कि मैं स्वयं को भी नहीं पहचान पाता। मैंने #मुख्यमंत्री के रूप में राज्य पर न्यूनतम् आर्थिक बोझ डाला। मुख्यमंत्री आवास के स्थान पर गेस्ट हाउस के एक फ्लैट में तीन वर्ष का कार्यकाल गुजारा, वक्त इस प्रतिज्ञान के साथ गुजारा जब तक आपदा पुनर्वास का काम पूरा नहीं हो जाता, मैं मुख्यमंत्री आवास में नहीं रहूंगा। मुख्यमंत्री न रहने पर सभी सुविधाओं को 10 दिन के अंतराल में प्रशासन को वापस सौंप दिया। गर्दन टूटी, मगर इलाज अमेरिका में करवाने के बजाय एम्स नई दिल्ली में करवाया, वह भी केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा (CGHS) के आधार पर, जबकि अपने जीवन को बचाने के लिए मुझे दुनिया में उपलब्ध सबसे अच्छी सुविधा का लाभ लेना चाहिए था! विदेश तो छोड़िए स्वदेश में भी शायद एकाध राज्य के अलावा कहीं नहीं गया, न विदेश यात्राएं की, न स्वदेश यात्रा की, तीन वर्ष उत्तराखंड में आपदा से लेकर जन समस्याओं से जूझता रहा। मुख्यमंत्री के रूप में न्यूनतम् सुविधाएं ली, यहां तक कि मुख्यमंत्री की फ्लीट में केवल 4 कारों को उपयोग में लाने का आदेश दिया। सादगी, सतत व सहज उपलब्धता को अपना स्वभाव बनाया। मेरे कार्यकाल में माननीय हाईकोर्ट के निर्णय का लाभ उठाकर भूत पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाओं को समाप्त करने का फैसला लिया गया, जबकि मेरे ऊपर विधानसभा में भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाओं के लिए कानून बनाने का दबाव था। मेरे कुटुंबी जन व रिश्तेदारों को मेरे कार्यकाल में कोई खनन पट्टा, परमिट, ठेका आदि नहीं दिया गया और न किसी को विधानसभा से लेकर कहीं भी नियुक्ति दी गई! उत्तराखंड के बालू ने सभी नेताओं और उनके स्वजनों को उपकृत किया है और जिन चंद नेताओं के परिजनों या स्वजनों ने इस बहती गंगा में हाथ नहीं धोया उनमें मेरा नाम अग्रणीय होना चाहिए। नियति की विडंबना है कि मुझे लगातार चुनावी हारों के साथ-साथ अपराधिक आरोपों से मुक्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है! शायद भगवान केदारनाथ व उत्तराखंड की सेवा में मुझसे कुछ ऐसी गलतियां हुई होंगी जिसके परिणाम स्वरूप मुझे एकाध ऐसे लोगों के साथ सह अभियुक्त के रूप में न्यायिक पुकार की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है, जिनके साथ नाम जोड़ने की कल्पना भी अत्यधिक दु:खद है। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब आपको खुद अपने मन को उत्साहित करने के लिए बहुत प्रयास करने पड़ते हैं, मैं ऐसी ही स्थिति से गुजर रहा हूं। मैं वर्ष 2013 तक दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्थित रूप से स्थापित था और आज भी ऐसे प्रलोभन की संभावनाएं मेरे मन को डिगाती हैं। दो-एक बार मेरे मन में भाव आया कि चलो अब यहां सब छोड़ो ! यह आज का उत्तराखंड 2000 या 2005-07 के कालखंड का उत्तराखंड नहीं है! “आधी रोटी खाएंगे”…… यह नारा एक दुरा स्वप्न रूपी भाव बन चुका है। मन के कोने से अपने आप आवाजें उठती हैं कि क्या हार से भाग रहे हो? फिर कदम ठिठक जाते हैं। यूं मैं राजनीति में अपने को धीरे-धीरे समेटने लगा था। #अहंकारी सत्ता ने मेरे सामने फिर एक चुनौती डाल दी है। मेरी रगों में दौड़ रहा मेरी मां का दूध मुझसे कह रहा है कि तुझे सौगंध है, संघर्ष करते रास्ते मर जाना, मगर परिस्थितियों से पलायन कर भागने की मत सोचना। #उत्तराखंडियत की लाठी टेकते-टेकते हो सकता है एक बार 2024 में ही सही कांग्रेस को विजय पथ पर अग्रसर होते देख लूं। मैंने निर्णय किया है कि मां के दूध के स्वरों को ही सुनूंगा और गीता में भगवान कृष्ण के शाश्वत शब्द दैन्यं न पलायनम् का उच्चारण करते संघर्ष की लाठी को टेकते-टेकते आगे बढूंगा।
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