उत्तराखंड कांग्रेस के सीनियर नेता हरक सिंह रावत की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। पादरी सफारी से जुड़े मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच कराने का आदेश दिया है। 1 सितंबर को कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रखा था और आज जज ने साफ किया कि मामले की जांच सीबीआई से ही कराई जाए। अबतक विजिलेंस इस केस की जांच कर रही थी मगर कोर्ट में सुनवाई के दौरान ये पाया गया कि विजिलेंस की जांच की रफ़्तार बेहद सुस्त है और अब तक की जांच संतोषजनक नहीं है इसीलिए मामला सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया गया है। बीते दिनों विजिलेंस ने हरक के ठिकानों पर छापेमारी की थी और जनरेटर जब्त किए थे। पूरे मामले पर सियासी घमासान भी हुआ था। हरक ने दावा किया है कि उनके पास सबके कारनामों की लिस्ट है लिहाजा जब वो बोलेंगे तो कई लोग बेनकाब होंगे।
क्या है मामला जिस पर जांच के आदेश हुए?
मामला 2017 से 2022 के बीच का है जब हरक सिंह रावत बीजेपी की सरकार में वन मंत्री थे। जिम कार्बेट नेशनल पार्क की पाखरो रेंज में 215 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगा। मामले की जांच अब पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत तक पहुंच गई है।
क्या है पूरा विवाद?
कथित घोटाले की शुरुआत 2019 में हुई। आरोप है कि पाखरों रेंज में बिना वित्तीय स्वीकृति और अनुमति के निर्माण कार्य शुरू किया गया। इस रेंज में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट टाइगर सफारी का 106 हेक्टेयर में निर्माण किया जा रहा था। मामले में वकील और वन्य जीव संरक्षण के लिए काम करने वाले गौरव बंसल ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसके साथ ही उन्होंने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी में भी इसकी शिकायत की थी।इसके बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और एनजीटी की टीम में स्थलीय निरीक्षण किया था। जिसमें 215 करोड़ के घोटाले होने की बात सामने आई थी। पिछले साल विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी ने इस मामले में मुकदमा दर्ज किया इसके बाद तत्कालीन रेंजर बृज बिहारी शर्मा को गिरफ्तार किया गया। 24 दिसंबर 2022 को डीएफओ किशन चंद को भी मामले में गिरफ्तार किया गया। हालांकि रेंजर ब्रिज बिहारी शर्मा की जमानत हो चुकी है लेकिन किशनचंद अभी भी मामले में जेल में बंद है। इस मामले में निर्धारित अनुमति से ज्यादा रिजर्व फॉरेस्ट के हरे पेड़ कटवाने सरकारी धन का दुरुपयोग करने और भ्रष्टाचार में संकट होने के अधिकारियों पर आरोप थे।
जांच रिपोर्ट में क्या है?
रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 6093 पेड़ अतिरिक्त काटे गए। टाइगर सफारी के नाम पर खर्च हुआ पैसा दूसरे काम के लिए था। इसे कमीशन और अन्य लालच में ठेकेदारों को आवंटित कर दिया गया । गड़बड़ी करने वाले अधिकारी इस बात को लेकर भी आश्वस्त थे कि उन्हें जो पैसा बाद में मिलेगा उसे इस मद में जमा कर दिया जाएगा। जिन जगह सड़क भवन और अन्य निर्माण हुए वह कर सेंसेटिव जोन में आता है यहां किसी प्रकार का निर्माण नहीं हो सकता है। 163 पेड़ काटने के आदेश के खिलाफ 6200 पेड़ काट दिए गए इस मामले में IFS अधिकारी राजीव भरतरी, जे एस सुहाग, राहुल पर भी गाज गिरी। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया। पाखरु सफारी प्रोजेक्ट के लिए राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से भी अनुमोदित नहीं कराया गया। सुप्रीम कोर्ट के CEC कमेटी लंबे समय से इस मामले की जांच कर रही है 24 जनवरी 2023 को कमेटी के सदस्य सचिव अमरनाथ शेट्टी की ओर से सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि टाइगर सफारी केवल अधिसूचित टाइगर रिजर्व के बाहर और बाघों के प्राकृतिक आवास के बाहर स्थापित की जा सकती है लेकिन इस मामले में इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया।
हरक रावत पर क्या आरोप?
पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत पर आरोप है कि उन्होंने इस मामले में तत्कालीन डीएफओ किशन चंद के गलत कामों को बढ़ावा दिया इसलिए उनसे पूछताछ के साथ ही कार्रवाई की सिफारिश भी इस मामले में की गई। इस मामले में कांग्रेस का कहना है कि कोई भी नेता जब तक भाजपा में होता है तो दूध का धुला होता है। किसी भी तरह के आरोप हों लेकिन कोई जांच नहीं होती लेकिन कांग्रेस में आता है तो फिर जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके इस तरीके से मामलों की जांच के नाम पर एक पक्ष की कारवाई शुरू हो जाती है। वहीं बीजेपी ने साफ किया है कि जांच एजेंसियों पर किसी तरीके का सरकार का कोई प्रभाव नहीं है जांच एजेंसियां स्वतंत्र हैं और उसी तरह से जांच करती हैं मामले में अगर हरक सिंह रावत गलत नहीं है तो फिर कांग्रेस किस तरह के बयान क्यों दे रही है पूरी जांच हो जान देनी चाहिए।
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