18 September 2025

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धामी सरकार के भू कानून पर इंद्रेश मैखुरी ने उठाए गंभीर सवाल

धामी सरकार के भू कानून पर इंद्रेश मैखुरी ने उठाए गंभीर सवाल

लेफ्ट नेता और समाज सेवी इंद्रेश मैखुरी ने उत्तराखंड में संशोधित भू कानून को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मैखुरी ने कहा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार द्वारा उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम 1950) में संशोधन के लिए लाया गया विधेयक, जिस आम बोलचाल की भाष में भू कानून कहा जा रहा है, एक ऐसा कानून है, जो जमीनों की लूट को रोकता नहीं है, बल्कि लूट के रास्ते को घुमावदार बनाता है। 2018 में त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन की अधिकतम सीमा को खत्म करने के लिए उक्त अधिनियम में धारा 154(2) जोड़ी गयी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो कानून लाए हैं, उसमें 154(2) को खत्म करके, इससे मिलते जुलते प्रावधान को 154 (2 क) में लिख दिया गया है।

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इस धारा के तहत तो भूमि हस्तांतरण केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में होगा. लेकिन यह भी व्यवस्था है कि इस कानून के प्रावधान नगर निकाय क्षेत्रों में लागू नहीं होंगे.

इसके साथ ही इस विधेयक की धारा 156 में किए गए संशोधन के तहत पूरे प्रदेश में खेती, बागवानी से लेकर वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं तक कई सारे उद्देश्यों के लिए भूमि 30 साल तक की लीज पर ली जा सकती है.

इसका आशय यह है कि पूरे प्रदेश की जमीनों ही भू भक्षियों के निशाने पर होंगी.

श्री त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने भू उपयोग बदलने के संदर्भ में धारा 143 में उपधारा (क) जोड़ कर प्रावधान किया था कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदी गयी कृषि भूमि का भू उपयोग स्वतः ही बदल जाएगा. चूंकि इस संशोधन अधिनियम में इस पर कोई बात नहीं कही गयी है तो श्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा लाया गया यह प्रावधान अभी भी बदस्तूर जारी रहेगा.

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू कानून के संदर्भ में अगस्त 2021 में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने से लेकर अब तक जितना लंबा समय इस प्रक्रिया में लिया, उतने समय में तो पूरा कानून ही नए सिरे से लिखा जा सकता था. लेकिन उसके बजाय ऐसे संशोधन लाए गए हैं, जो बड़े भू भक्षियों से प्रदेश की जमीनों की रक्षा करने में नाकाम रहेंगे.

भूमि के संदर्भ में उत्तराखंड की सबसे पहली जरूरत है कि भूमि बंदोबस्त किया जाए.

साथ ही भूमि सुधार हो,भूमिहीनों में भूमि का वितरण हो, खास तौर पर पहाड़ में जो दलित भूमिहीन हैं उनको.

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कृषि भूमि के संरक्षण का कानून बनाया तथा पर्वतीय कृषि को उत्पादक व लाभकारी बनाने के ठोस उपाय किए जाएं. साथ ही प्रदेश में बंजर हो चुकी 88141 हेक्टेयर भूमि को भी उपजाऊ बनाने के लिए ठोस उपाय किए जाएं।