उत्तराखंड कांग्रेस में अंदरूनी कलह थम नहीं रही। दिल्ली में हुई बैठक के बाद कड़वाहट और भी बढ़ गई है। दिल्ली में जिस तरह शिकायतों का सिलसिला चला उसके बाद नेताओं की तल्खी खुलकर सामने आने लगी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कई ऐसी बातें कही हैं जो आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर नई जंग का आगाज़ कर सकती हैं।
प्रताड़ना झेलने को तैयार
करन माहरा ने दावा किया है कि अध्यक्ष बनने के बाद से ही उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। संगठन के काम में नेता समर्थन नहीं देते और अड़ंगा लगाते हैं। करन ने अप्रैल 2022 में अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद कुछ नेताओं की ओर से प्रदेश के दौरे पर ना निकलने की नसीहत का भी हवाला दिया है। करन ने दावा किया कि वो पार्टी की मजबूती के लिए काम करना चाहते हैं लेकिन कई नेता हैं जो उनकी टांग खींचने में लगे हैं। करन ने साफ किया कि वो अपना काम जारी रखेंगे और पार्टी के लिए प्रताड़ित होना पड़ा तो होते रहेंगे।
पावर सेंटर का गेम
करन माहरा के मुताबिक कांग्रेस में पावर सेंटर बदलने की वजह से दिक्कत हो रही है। करन ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा सीधे तौर पर हरीश रावत, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल की तरफ था। करन ने कहा कि जब से पावर सेंटर बदले हैं तभी से कई नेताओं को तकलीफ हो रही है इसीलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है। करन के मुताबिक नेता संगठन की बैठकों में नहीं आते, कार्यक्रमों में नहीं आते वो सिर्फ अपने हिसाब से ही पार्टी चलाना चाहते हैं लेकिन ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने इशारों ही इशारों में दिल्ली तक उनकी शिकायत पहुंचाने वाले नेताओं पर निशाना साधा। करन ने कहा कि दिल्ली जाकर सिर्फ वही लोग शिकायत करते हैं जो संगठन के कार्यक्रमों से दूर रहते हैं। करन ने ऐसे नेताओं पर तंज भी कसा और दावा किया कि वो हर जिले में कांग्रेस का कैडर मजबूत करेंगे ताकि भविष्य में पार्टी सत्ता में आ सके।
करन की कसरत, क्या है हसरत?
2017 और 2022 में करारी हार को लेकर कांग्रेस में आज भी तकरार जारी है। पार्टी क्यों हारी, किसने गड़बड़ की, गुटबाजी में कौन लोग शामिल थे इसे लेकर तमाम नेता बयानबाजी करते रहे हैं। मगर करन माहरा ने एक ऐसा मुद्दा उठाया है जिस पर तकरार तय है। करन माहरा ने चुनावी नतीजों पर अपना नजरिया पेश किया है। करन के मुताबिक 2016 की बगावत के बाद कांग्रेस का संगठन कमजोर हुआ और उसका असर अब तक दिखाई दे रहा है। करन माहरा ने सुप्रिया श्रीनेत के सामने कहा कि 2017 में गढ़वाल की 30 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 1 सीट जीती। तब कांग्रेस के कुल 11 विधायक जीतकर आए थे। जबिक 2022 में कांग्रेस ने 19 सीटें जीतीं मगर करन माहरा ने कहा कि गढ़वाल की 30 सीटों में से इस बार भी सिर्फ 3 सीटें ही कांग्रेस के खाते में आईं। करन ने कहा कि ऐसे नतीजे संगठन की कमजोरी की वजह से आए इसीलिए सरकार नहीं बन पाई। इशारों ही इशारों में माहरा ने इसे गुटबाजी का नतीजा भी माना।करन माहरा ने कहा कि संगठन को मजबूत करने के मकसद से ही उन्होंने अध्यक्ष पद संभालते ही गढ़वाल मंडल का दौरा किया और कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर जमीनी हकीकत समझने की कोशिश की। करन के मुताबिक उनका मकसद कांग्रेस का कैडर मजबूत करना है और इसके लिए वो कसरत करते रहेंगे। चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी बातें सुननी पड़ें और कितना भी विरोध झेलना पड़े। अब सवाल ये है कि प्रदेश अध्यक्ष का विरोध कौन कर रहा है? अगर संगठन की मजबूती के लिए काम हो रहा है तो कांग्रेस में ऐसे नेता कौन हैं जो इस पर एतराज कर रहे हैं? यानि कांग्रेस में विवाद का नया मुद्दा ये भी हो सकता है। करन संगठन की कमजोरी की वजह से पार्टी की हार की बात कर रहे हैं पर ये बात अलग है कि 2017 से 2022 तक खुद उपनेता प्रतिपक्ष रहे करन माहरा 2022 में अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे और रानीखेत से चुनाव हार गए थे। तो क्या ये माना जाए कि रानीखेत में भी कांग्रेस का संगठन 2022 में कमजोर पड़ गया था या माहरा गुटबाजी का शिकार हो गए?
कांग्रेस में गड़बड़
उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी हमेशा से हावी रही है। 2000 में अलग राज्य बनने के बाद हरीश रावत को पीसीसी चीफ बनाया गया। हरीश रावत को ही उत्तराखंड में कांग्रेस का संगठन खड़ा करने का क्रेडिट दिया जाता है। 2002 का चुनाव हरीश रावत के ही नेतृत्व में लड़ा गया और कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में कामयाब भी रही। तब सबको उम्मीद थी कि हरीश रावत ही मुख्यमंत्री होंगे लेकिन आलाकमान ने एनडी तिवारी को सीएम बना दिया। सरकार बनने के बाद से ही एनडी तिवारी और हरीश रावत के बीच तल्खी रही। 2007 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। आलाकमान ने हरीश रावत की जगह यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया फिर हरीश रावत और यशपाल आर्य में खींचतान चलती रही। 2012 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और विजय बहुगुणा सीएम बनाए गए। अब हरीश रावत और विजय बहुगुणा के बीच जंग छिड़ गई। 2014 में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने तो सबसे पहले सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद 2016 में विजय बहुगुणा, हरक रावत समेत 9 विधायकों ने कांग्रेस से बगावत की और रावत की सरकार गिर गई। 2016 में ही उत्तराखंड को पहली बार राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। हालांकि कोर्ट के आदेश पर हरीश रावत ने सदन में बहुमत साबित किया और सरकार बहाल हो गई । इसी दौरान राज्यसभा की एक सीट पर चुनाव हुआ। जिस पर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने दावा ठोका मगर हरीश रावत ने किशोर की बजाय प्रदीप टम्टा को राज्यसभा भेज दिया। इस फैसले के बाद किशोर भी रावत के खिलाफ हो गए। यानि अब टकराव हरीश और किशोर के बीच शुरू हुआ। 2017 के चुनाव से ठीक पहले यशपाल आर्य भी कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गए। नतीजा ये हुआ कि 2017 में कांग्रेस बुरी तरह हारी। आलाकमान ने हरीश रावत को साइडलाइन किया और प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जबकि इंदिरा हृदयेश को नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा सौंपा। इस बदलाव के साथ ही हरीश रावत की तल्खी अब प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश के साथ बढ़ गई। हालांकि बाद में हरीश रावत को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया लेकिन उत्तराखंड की राजनीति में वो लगातार बने रहे। 2022 आते आते संगठन में फिर बदलाव हुआ और पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। जिसके बाद प्रतीम और गोदियाल के बीच टेंशन बढ़ी। किशोर उपाध्याय बीजेपी में शामिल हो गए। हालांकि 2016 में बगावत करने वाले हरक रावत और 2017 में कांग्रेस को भला बुरा कहकर बीजेपी में गए यशपाल आर्य 2022 चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में वापस आ गए। मगर जब चुनाव हुए तो कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा और आलाकमान ने हरीश रावत, गणेश गोदियाल और प्रीतम सिंह को किनारे लगा दिया। अप्रैल 2022 में करन माहरा अध्यक्ष बनाए गए तभी से करन और दूसरे नेताओं के बीच तल्ख़ी चल रही है। कई बार नाराजगी सार्वजनिक हुई है तो कई बार अंदर खाने तूफान उठा है। यही वजह है कि आलाकमान को पीएल पुनिया के रूप में पर्यवेक्षक भी भेजना पड़ा। इसके बाद कुछ दिन मामला शांत रहा मगर एक बार फिर शिकायत वाली सियासत तेज हुई है।अमूमन शांत रहने वाले गोदियाल भी इन दिनों माहरा से खफा बताए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक पिछले हफ्ते दिल्ली में हुई बैठक के दौरान गणेश गोदियाल ने खुलकर शिकायत की थी। इसीलिए रविवार को देहरादून में करन माहरा ने भी अपनी बात कही और पार्टी संगठन के लिए सबसे मिलकर काम करने की वकालत की। बहरहाल टकराव लगातार बढ़ रहा है और आने वाले दिनों में ये कैसे थमेगा यही बड़ा सवाल है।
2024 की परीक्षा
लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। ऐसे में कांग्रेस के भीतर चल रही जंग बताती है कि ऐसा ही रहा तो नतीजे बेहतर कैसे होंगे इसे लेकर सवाल उठना लाजिमी है। हर नेता का अपना दावा है लेकिन माना जा रहा है कि इस बार दिल्ली दरबार टिकट बंटवारे में सबको चौंका सकता है। पुराने चेहरों को साइडलाइन कर नए फेस उतारे जा सकते हैं ताकि कुछ बदलाव दिखाई दे। मगर सवाल ये है कि अगर ऐसा हुआ तो पुराने नेता क्या करेंगे? सवाल ये भी है कि क्या आलाकमान अब हरीश रावत को भी हाशिए पर डालने का फैसला कर चुका है? चर्चा ये भी है कि एक सीनियर नेता और कुछ विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। इन कयासों और अटकलों के बीच ही कांग्रेस की रणनीति उलझी हुई है और 2024 की परीक्षा में कामयाबी कैसे मिलेगी ये लाख टके का सवाल है। अब सब कुछ करन माहरा और उनकी मेहनत पर ही टिका है। क्योंकि बीते दिनों जब माहरा दिल्ली गए थे तब वेणुगोपाल ने कहा था कि बतौर पीसीसी चीफ आपसे बहुत उम्मीदें हैं लिहाजा काम करो और खुद को साबित करो। यानि कांग्रेस और करन दोनों की परीक्षा 2024 में होगी। देखना यही है कि करन कैसे सबको साथ लेकर चलते हैं जिसका वो बार बार जिक्र करते हैं और कैसे खुद को साबित करते हैं। ये बात तो तय है कि कांग्रेस में गुटबाजी है और इसी सच्चाई के बीच करन के सामने खुद को साबित करने की चुनौती है।
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