कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने आज देहरादून में बयान जारी करते हुए कहा कि धामी सरकार ने बहुत विलंब से भू-कानून पर आधी-अधूरी तैयारी के साथ कदम आगे बढ़ाए हैं। जब भू-कानून का मसौदा सदन के पटल पर रखा जाएगा, तब उसके अध्ययन के बाद ही विस्तृत टिप्पणी की जा सकेगी। लेकिन, अभी जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार कांग्रेस पार्टी और राज्य की जनता जिस कड़े भू-कानून की मांग कर रही थी, उसे लाने में सरकार ने कोई जिज्ञासा या रुचि नहीं दिखाई है। सरकार की मंशा केवल वाहवाही लूटने की है।
करन माहरा ने कहा कि कैबिनेट द्वारा पारित भू-कानून केवल प्रदेश के 11 जिलों पर लागू होगा। इन 11 जिलों में कृषि और वानिकी के लिए भूमि खरीद पर रोक होगी, जबकि अन्य प्रयोजनों के लिए शासन की अनुमति से भूमि खरीदी जा सकेगी। कुल मिलाकर, सरकार ने घुमा-फिराकर भूमि की बंदरबांट का रास्ता खुला रखा है। मैदानी जनपदों में ही भू-कानून का सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है, और वहाँ अब भी कृषि और बागवानी (हॉर्टिकल्चर) के नाम पर भूमि खरीदी जा सकेगी। इसके दुरुपयोग की पूरी संभावना बनी हुई है, क्योंकि पहले भी भू-माफिया कृषि और बागवानी के नाम पर जमीन खरीदकर उसे व्यावसायिक और आवासीय गतिविधियों के लिए उपयोग करते रहे हैं। इससे राज्य के भू-कानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती रही हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति उत्तराखंड में एक वर्ष तक निवास करता है, तो उत्तराखंड सरकार उसे स्थायी निवासी के रूप में स्वीकार करने की बात कह रही है। इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या उसे उत्तराखंड में भूमि खरीदने का अधिकार मिलेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। साथ ही, राज्य सरकार ने हरिद्वार और उधम सिंह नगर को इस प्रावधान से छूट दी है, जिससे भू-माफियाओं को लाभ मिलने की संभावना बढ़ सकती है।
इस कानून के तहत, जिला अधिकारी के अधिकारों को सीमित कर दिया गया है, जबकि किसी भी क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी केवल जिलाधिकारी के पास ही उपलब्ध होती है।
वहीं दूसरी ओर, सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को प्रदेश में लागू करने से पहले दो वर्षों का समय लिया और करोड़ों रुपये खर्च किए। ऐसे में, भू-कानून को जल्दबाजी में लागू करना कितना उचित होगा, यह विचारणीय है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कैबिनेट द्वारा पारित भू-कानून में भू-माफिया के लिए पूरी संभावनाएँ छोड़ी गई हैं, जिससे राज्य के आंदोलनकारी संगठनों और जनता में निराशा है। जिस कड़े भू-कानून के लिए संघर्ष किया जा रहा था, उसे लाने में सरकार विफल रही है। 2018 में भाजपा सरकार द्वारा भू-कानून में किए गए संशोधनों को भले ही निरस्त कर दिया गया हो, लेकिन उन संशोधनों के कारण हुए दुरुपयोग पर सरकार क्या कदम उठाने जा रही है, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। 2018 के बाद भूमि की लूट की जो अनुमतियाँ दी गई थीं, उन्हें तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए।
कांग्रेस पार्टी सरकार द्वारा लाए जा रहे भू-कानून का विस्तृत अध्ययन करने के बाद अपनी आगे की रणनीति की घोषणा करेगी।
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