पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के विकास से जुड़े मुद्दे सपने में देखने की बात कही है। हरीश रावत ने कहा अभी-अभी उत्तरायणी का त्यौहार मनाया गया, बागेश्वर जाने की प्रबल इच्छा थी। शरीर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण मैं चाहते हुए भी नहीं जा पाया। उत्तरायणी का पर्व नई आकांक्षाओं को जन्म देता है। कल रात को उत्तरायणी की बात सोचते-सोचते मुझे कब नींद आ गई, यह तो पता नहीं, लेकिन नींद में कई सोचें, कई ख्वाहिशें मेरे अचेतन मानस पटल पर उछल-कूद मचाती रही। मैंने कई सपने राज्य बनने से पहले व राज्य बनने के साथ देखने शुरू किये और उनको अपने से लिपटाता गया, वही सोचें-वही ख्वाहिशें कल रात मुझे सपने में परेशान करती रही, उनमें से एक प्रमुख ख्वाहिश गैरसैंण को लेकर है।
मैं सोचता था कि 2022 तक विधायी और प्रशासनिक व्यवस्था को गैरसैंण स्थानांतरित कर दूंगा। विधानसभा भवन तो बन ही गया था, सचिवालय और आवासीय परिसरों की नींव डाल दी थी। आज इस सपने को देखे 7 साल होने को आ रहे हैं, अब तो मैं जागते-जागते भी इस सपने को देखता हूं, इस बार तो यह सपना नींद में भी आया और बड़ी प्रमुखता से आया, शायद इसलिए आया कि कई दिनों से रायपुर में विधानसभा भवन की बात हो रही है।
9 जिले, 3 कमिश्नरी बनाने की योजना
एक ऐसा ही सपना मैंने 2016 में देखा, वह सपना है 9 नये जिले और 3 नई कमिश्नरियों के गठन का। मैंने अपनी इस सोच को साकार रूप देने के लिए 2016 के बजट में 100 करोड़ रुपए का प्राविधान किया था। डीडीहाट, रानीखेत, गैरसैंण, कोटद्वार, वीरोंखाल (जिसको जसवंत सिंह नगर के नाम से अब जिला मांगा जा रहा है), रूड़की, काशीपुर, पुरोला, नरेंद्र नगर में जिले और टिहरी, अल्मोड़ा व हरिद्वार में नई कमिश्नरियों का गठन हमारी ख्वाहिश थी। मैंने इस बात की कल्पना को भी साकार करने की सोची कि कुछ नये राज्य पोषित विकासखंड हों, हम उनको सृजित करेंगे, राज्य के कई विकासखंड जो लगभग जिले के आकार के हैं वहां नए विकासखंडों की वर्षों से मांग रही है, कुछ ऐसी मांगों का मैं स्वयं भी आंदोलनकर्ता रहा हूं, बहुत सोचने और मनन के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यदि राज्य सरकार वित्त पोषण का दायित्व ले तो नए विकासखंड सृजित किये जा सकते हैं। राज्य के कई क्षेत्रों में उभार है नई शहरीकृत व्यवस्था के सृजन का। हमने 36 ऐसे स्थान चयनित किये और उस सोच को काउंटर मैग्नेटिक टाउनशिप का नाम दिया। जैसे भराड़ीसैंण, गरुड़ाबाज, चिन्यालीसौड़, मजखाली, मुक्तेश्वर, जयहरीखाल आदि-2 को काउंटर मैग्नेटिक टाउन के रूप में डेवलप करेंगे, हमने इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए कुछ कदम भी उठाए, कदम तो हमने राज्य को एकीकृत हवाई सेवा देने के लिए भी उठाये, कंपनी के साथ एग्रीमेंट किया और ट्रायल सेवाएं प्रारंभ की।
हमारी सोच थी कि कुछ सेक्टर जैसे केदारनाथ, बद्रीनाथ सेक्टर से कमाएंगे और राज्य के दूर-दराज क्षेत्रों में कम दर पर हेलीकाप्टर सेवाएं और हवाई सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। आज भी जब मैं उन हेलीपैडों को जिनका हमने निर्माण किया था और हवाई पट्टियों को देखता हूं तो मन में आक्रोश उठता है, उस आक्रोश ने मुझे कल सपनों में भी झकझोरा। इतनी ही जोर से दो मेट्रो लाइनें जिन्हें हम संविधान निर्माता डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के नाम पर निर्मित करना चाहते थे, उन्होंने भी झकझोरा है। एक ऐसी ही मेट्रो लाइन जो कुमाऊं की तराई और दूसरी मंगलौर-रुड़की-हरिद्वार होकर वाया ऋषिकेश-देहरादून तक पहुंच सके वह भी अधूरा ख्वाब रह गया है। हमने एक मॉडल प्लान बनाया जिसको हम 5 साल में क्रियान्वित करना चाहते थे जिसके तहत एक मॉडल होमस्टे का कॉन्सेप्ट था ताकि पर्यटन आम आदमी के साथ जुड़ सके और ग्रामीण व्यवस्था के साथ भी जुड़ सके, हमने सिक्किम की तर्ज पर हर घर को दुग्ध, मांस, फल, अन्न आधारित प्रोसेसिंग यूनिट के रूप में डेवलप करने का सपना देखा ताकि स्वरोजगार, वास्तविक अर्थों में एक सपना साकार हो सके और इसको सप्लीमेंट करने के लिए हमने सोचा था कि छोटे-छोटे 100 किलोवाट, 200 किलोवाट आदि की सोलर वैंडिंग यूनिट्स स्थापित करेंगे और यह स्थापित करने के लिए अपने युवाओं को ट्रेनिंग और वित्त पोषण ताकि हम सोलर एनर्जी पावर तो बन सकें, मगर अपने लोगों के साथ बन सकें, अपने गांव के नौजवानों के साथ बन सकें, मैंने इसी के साथ यह सपना भी देखा था कि स्वरोजगार अपनाने वाले लड़के और लड़कियों को हम 5 वर्ष में ₹2,00,000 तक की ब्याज सब्सिडी देंगे ताकि बैंक, सरकार की गारंटी पर स्वरोजगारी को कर्ज दे सके, कल रात नौजवानों की व्यथा मुझे बहुत झकझोरती रही। हमने वादा किया था कि 2022 तक सरकार में कोई रिक्त पद नहीं रह जाएगा और 10 प्रतिशत अतिरिक्त पद प्रत्येक विभाग में सृजित किए जाएंगे। मैं उनको कैसे समझाता कि 2017 में मेरा भी सपना टूटा, इसीलिए आज आपको मेरे सपनों में आना पड़ रहा है। हमने कई सामाजिक समूहों को पिछड़े वर्ग का दर्जा दिया। उस समय हमने एक लंबी फेहरिस्त बनाई कि पहाड़ों और मैदानों में कौन-कौन से ऐसे और सामाजिक समूह हैं जिनको पिछड़े वर्ग के अंदर सम्मिलित किया जा सकता है और उसके लिए हमने सोचा कि हम ओबीसी आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर राष्ट्रीय सीमा तक लायेंगे, कई जातियां जैसे मुनस्यारी, धारचूला, राठ, प्रतापनगर, जोशीमठ, पुरोला, उत्तरकाशी, हरिद्वार के चौहान आदि समूहों को ओबीसी की सूची में सम्मिलित किया। हमने सोचा इस तर्ज पर और जातीय समूहों को भी हम पिछड़े वर्ग के अंदर लायेंगे ताकि हमारी वह कल्पना जो हमने राज्य निर्माण के आंदोलन के दिनों में की थी कि उत्तराखंड को पिछड़े क्षेत्र के रूप में सम्मिलित किया जाए। यदि हमारी यह कल्पना सार्थक हो गई होती तो हमारा उत्तराखंड भी राष्ट्रीय मुख्य धारा जिसको ओबीसी कहा जा रहा है उसका हिस्सा होता।
किसानों से जुड़ी योजनाएं
किसानों के गन्ने ने भी सपने में मुझे बहुत सताया, 425 रुपया प्रति कुंतल से कम पर गन्ना बिकने को तैयार ही नहीं था। हमने 425 रुपए के पार गन्ना खरीद मूल्य की बात कही है और इस उम्मीद पर कही है कि हम 2024 में केंद्र में सत्ता में आयेंगे और अपनी इस सोच को पूरा करेंगे। मैंने गन्ने को लेकर एक और धरातलीय सपना देखा था, वह था गुड़ निर्माण उद्योग को राज्य उद्योग का दर्जा देना और उस हेतु आवश्यक आर्थिक, प्रशासनिक व सामाजिक प्रोत्साहन देने का। हमारे राज्य में कई जातीय समूह हैं जिनकी आजीविका तालाबों, नदियों के पाटों या मिट्टी के बर्तन बनाने आदि के हस्तशिल्पों से है, उनकी आजीविका को संरक्षण देना व राज्य के प्रत्येक भूमिहीन को कम से कम 100 गज जमीन मिल सके इसका भी सपना मैंने देखा, बार-बार देखा। मैंने यह भी सपना देखा कि राज्य के प्रत्येक शिल्पी चाहे वह किसी जाति धर्म का हो उसके शिल्प का सम्मान हो, इसी इच्छा की पूर्ति के लिए हमारी सरकार ने अल्मोड़ा में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा परंपरागत शिल्प संस्थान की स्थापना की और निर्णय लिया कि प्रत्येक शिल्प के सम्मान के लिए कानूनी व्यवस्था की जाएगी और शिल्पी को एक उम्र के बाद शिल्प सम्मान पेंशन से नवाजा जाएगा, यह सपना कुछ आगे बढ़ा, फिर समय के साथ ठिठक गया और अब यह अधूरे कामों के सपने भी बहुत चिहुंक-चिहुंक कर कुछ करो-कुछ करो कह रहे हैं। हमारी खेती, चाहे मैदान की हो या पहाड़ की हो, दोनों में उत्पादकता ठहर गई है। जब उत्पादकता ठहर जाती है तो तब किसान की आमदनी भी ठहर जाती है, जबकि कृषि कार्य पर खर्चा बढ़ता रहता है। मेरी हार्दिक इच्छा थी कि पंतनगर व भरसार विश्वविद्यालय, विवेकानंद अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के साथ मिलकर ऐसा फसल चक्र बनाएं जो मैदानी और पहाड़ी खेती, दोनों को लाभकारी बना सके ताकि हमारे फल, हमारा अन्न, हमारी दालें व सब्जियां उस समय बाजार में आएं जिस समय देश के अन्य भागों के कृषि, बागवानी उत्पाद बाजार में न आ रहे हों ताकि हमारे किसानों को उचित मूल्य मिल सके, यह वैज्ञानिक शोध की बात थी और मैंने इस हेतु 2 करोड़ रूपया पंतनगर विश्वविद्यालय को उनके तत्कालीन कुलपति के अनुरोध पर दिया था, शोध कितना आगे बढ़ा है या बढ़ रहा है, मुझे मालूम नहीं। मोटे अनाज, आज दुनिया का नारा बन गया है। मैंने वर्ष 2014 में इन मोटे अनाजों का सपना देखा था। मुख्यमंत्री के रूप में मैंने मडुआ, गहत आदि-आदि के प्रोत्साहन के लिए कार्य योजनाएं बनाई और उस कार्य योजना का एक हिस्सा इनके उत्पादकों को बोनस देने का भी था। मैं उस दिन की कल्पना करता हूं कि जिस दिन कम से कम ₹1000 प्रति कुंतल मडुवा, गहत आदि के उत्पादक को राज्य सरकार बोनस देगी। माल्टा, नींबू और चुलू उत्पादक को भी राज्य बोनस की स्कीम में सम्मिलित करेगी, यह भी मेरे सपने का हिस्सा था। इसलिए मैंने मेरा वृक्ष-मेरा धन और जल बोनस, दुग्ध बोनस, मोटे अनाजों पर बोनस देने की योजना प्रारंभ की थी। मैं 2017 के बाद इस कल्पना को और तीखा व धारदार बनाना चाहता था ताकि मडुवा, गहत, माल्टा, गन्ना उत्पादन बेबसी न होकर लाभप्रद आर्थिकी में बदल सके। कल रात ये सारे बोनस सवाल बनकर मेरे सामने खड़े हो गए। चकबंदी व भूमि सुधार का सपना मैंने उत्तराखंड के अन्य राजनेताओं की तर्ज पर देखा और हमारी सरकार ने चकबंदी का कानून बनाया तथा कई भूमि सुधार किये, मगर आज की सरकार ने भू-सुधार के बजाय भूमि बेचो अभियान को हवा दे दी है। आज एक अच्छा भू-कानून तथा भूमि की चकबंदी सब उत्तराखंडियों का सपना है, मेरे सपनों में भी इस सोच ने बहुत उछल-कूद मचाई।
महिला कल्याण और विकास
मुख्यमंत्री के रूप में जब भी मैंने महिलाओं के कल्याण के लिए कुछ योजनाएं प्रारंभ की तो मैं अपनी मां के फोटो के सामने खड़ा होता था और कहता था मां, आज मैंने फिर अपनी मां-बहनों के लिए फलां-फलां योजना प्रारंभ की है, लेकिन मेरी मां के चेहरे पर जो झुर्रियां हैं वह कम नहीं होती थी, मैं और चिंतित हो जाता था, आगे और क्या करूं उसके सपने देखता था। इस सोच को लेकर मैंने मन में एक कल्पना बनाई थी कि क्यों न बैंक में प्रत्येक वयस्क बेटी व बहन का खाता हो, जिसके खाते में हर माह ₹2000 हमारी सरकार महिला सम्मान राशि के रूप में डाले। जब मैंने अपनी मां से कहा कि यह मेरी सोच है, मुझे लगा जैसे वह कुछ मुस्कुरा रही है और उसकी झुर्रियां कुछ कम हो गई हैं, क्योंकि मैंने अपनी मां की बेबसी देखी थी। इसलिए मैं नहीं चाहता था कि ऐसी बेबसी किसी बहन और बेटी के सामने आए, जो मेरी मां को उसके जीवन काल में झेलनी पड़ी थी। इसलिए सार्वभौम महिला सम्मान राशि देने का संकल्प मैंने अपने मन में बांधा था, जो 2017 में बिखर गया। खैर कल रात इस सोच ने भी मुझे काफी परेशान किया और मुझसे मेरे सपने में कई बहनें पूछने लगी कि तुम कहते थे कि सरकारी पदों में 40 प्रतिशत स्थान बेटियों के लिए होंगे और आज इस बात को सबने बिल्कुल भुला दिया है। लोग गांव छोड़ रहे हैं, इसलिए जो गांव में हैं उनको हम क्या प्रोत्साहन दे रहे हैं, यह महत्वपूर्ण है। ₹2000 प्रति माह ऐसे परिवार को कुड़ी-बाड़ी सम्मान योजना के तहत देने की सोच आगे बढ़ाई थी, मगर सोच वहीं ठहर गई। यूं हमने बुजुर्गों के सम्मान के लिए कई योजनाएं प्रारंभ की, मगर पेंशन राशि ढाई हजार रुपया प्रति माह हो, यह सपना ही रह गया। मैं केवल ₹1200 प्रति माह तक कर पाया। हमारे शास्त्र कहते हैं कि बुजुर्गों के चरणों में स्वर्ग है, मैंने सोचा था कि इस स्वर्ग से मैं क्यों वंचित रहूं! मगर वक्त ने इस पुण्य का लाभ उठाने का मुझे अवसर ही नहीं दिया। मैंने सपने में आए बुजुर्गों को अपनी व्यथा बताई, उन्होंने कहा कि कुछ करते रहो। मैंने अपने सपनों से कहा कि तुम मुझे क्यों परेशान कर रहे हो? मैं कुछ शारीरिक रूप से परेशान हूं, कुछ आर्थिक रूप से भी अक्षम हूं, इसलिए अब मैं राजनीतिक ख्वाहिशों का बक्सा बंद करना चाहता हूं। लेकिन ये ख्वाहिशें जो मेरे भाई बंधु, मेरी सोच और समझ अपने परिवेश के साथ जुड़ी हुई हैं वह मेरा पल्ला छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। जैसे कह रही हों, ये क्या अब भी उतैरणी के कौतिक में जाने की इच्छा छोड़ने को तैयार है तुम्हारा मन! जब यह सवाल मुझसे पूछा तो मैं अचकचा गया, मुझे यहां तक स्मरण पड़ता है कि मैंने अपने स्वप्निल मन से कहा कि मन, तुमने उस समय जो सपने देखे थे, वह वास्तविकता के धरातल पर देखे थे, तुम उन सपनों को साकार करने के लिए कुछ करने की स्थिति में आज नहीं हो, एक सिलसिला था जो टूट गया और तुमने कोई अव्यावहारिक सपने भी नहीं देखे थे। तुमने वही सपने देखे थे जिनको धरती पर उतारने की तुमने शुरूआत की थी, केवल 5 साल के सपने देखे थे। मैंने अपने मन से कहा कि मैंने क्या गुनाह किया? मैंने देहरादून में कोई भव्य भवन का सपना नहीं देखा, मैंने बच्चों के लिए मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज या बड़े होटल बनाने का सपना नहीं देखा, मैंने बड़ी-बड़ी कारों का सपना नहीं देखा, यदि मैंने जनता के कल्याण के लिए कुछ सपने देख लिए, अपने राज्य की भलाई के लिए कुछ सपने देख लिए तो मैंने क्या गलती कर दी? मुझमें जितना सामर्थ्य था 3 साल मैंने उन सपनों को धरती पर उतारा और आज जब वह सामर्थ्य छिन गया तो अब वह सपने मुझे क्यों तंग कर रहे हैं? लेकिन सपने हैं, वह धमा चौकड़ी मचाना छोड़ नहीं रहे हैं। कोई मेरे मन से भी कह रहा है कि आवश्यक नहीं तुम्हारे हाथ में सत्ता का सूत्र हो, मगर तुम्हारे हाथ में भावना का सूत्र तो है, तुम्हारे हाथ में संघर्ष का सूत्र तो है, प्रयास करते रहो। मुझे लगा कि इस रात के सपने मानने वाले नहीं हैं, थक कर मुझे फिर झपकी आ गई। सुबह जब उठा तब भी मन में उन्हीं सपनों का द्वंद था, अब उस द्वंद्व को मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं।

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