उत्तराखंड कांग्रेस के झगड़े और विवाद क्या खत्म हो जाएंगे?उत्तराखंड कांग्रेस का संगठन क्या एकजुट होकर काम करने लगेगा? उत्तराखंड में कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी ज़मीन हासिल करने में कामयाब हो पाएगी? ये वो सवाल हैं जो हाल के दिनों में हुए कुछ डेवलपमेंट के बाद तेजी से उठ रहे हैं। उत्तराखंड में जिस तरह कांग्रेस में गुटबाजी है और नेताओं की अपनी-अपनी हसरतें हैं उससे ना चाहते हुए भी टकराव और तकरार की ख़बरें आ ही जाती हैं। जिसका असर कांग्रेस की सियासी सेहत पर भी पड़ता है और जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटता है। शायद इसीलिए आलाकमान ने बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है और पार्टी में चेक एंड बैलेंस यानि संतुलन बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए हैं। जिसे मौजूदा हालात से उभरने के लिए टेंपररी सियासी सर्जरी भी कहा जा सकता है। हालांकि इसमें कामयाबी कितनी मिलेगी ये कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन एक नए प्रयोग की शुरुआत तो की ही गई है।
नेताओं को उत्तराखंड से बाहर जिम्मेदारी
बीते कुछ दिनों में कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड के कांग्रेस के नेताओं को चुनावी राज्यों में जिम्मेदारी सौंपी है। जिसमें प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल भी शामिल हैं। पूर्व अध्यक्ष प्रीतम सिंह को छत्तीगढ़ में सीनियर ऑब्जर्वर बनाकर भेजा गया है जबकि पूर्व पीसीसी चीफ गणेश गोदियाल राजस्थान में स्क्रीनिंग कमेटी के मेंबर बनाए गए हैं। दोनों नेताओं को शॉर्ट टर्म के लिए ही सही मगर आलाकमान ने एडजस्ट किया है और ये संदेश देने की कोशिश की है कि जहां जरूरत होगी वहां नेताओं की काबलियत का इस्तेमाल जरूर किया जाएगा। ऐसे में उत्तराखंड में कांग्रेस को सत्ता दिलाने में नाकाम रहे नेताओं के सामने अब खुद को साबित करने की चुनौती है। हालांकि दोनों ही नेता काफी अनुभवी हैं मगर उत्तराखंड से बाहर की राजनीति का इनका पहला तजुर्बा है ऐसे में इसे टेस्ट के तौर पर भी देखा जा सकता है। दूसरा पहलू ये ही कि मौजूदा वक्त में सौंपा गया काम इनके आने वाले कल का अंजाम भी तय करेगा।
कुछ और नेताओं की भी ड्यूटी

प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल ही नहीं हाईकमान ने उत्तराखंड कांग्रेस के कुछ और नेताओं को भी अलग-अलग भूमिकाओं में बांधा है। पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा को मध्य प्रदेश की भिंड लोकसभा सीट का ऑब्जर्वर बनाया गया है। जबकि पूर्व राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी को ग्वालियर का ऑब्जर्वर बनाया है। इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष राजपाल खरोला को राजस्थान की चुरू लोकसभा सीट का ऑब्जर्वर बनाया गया है। इन नेताओं को अलग-अलग जगह का काम मिला है और अब इनकी जिम्मेदारी आलाकमान की उम्मीदों पर खरा उतरने की है।
आलाकमान का संकेत क्या है? 
कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड के नेताओं की ड्यूटी लगाकर पहला संदेश ये दिया है कि छोटा राज्य होने के बाद भी यहां के नेताओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा रहा। दूसरे संदेश ये है कि नेता अपनी काबलियत दिखाएं और भविष्य में भी इनाम पाएं। इसके अलावा एक संकेत ये भी है कि आलाकमान अब 2024 की रणनीति में जुटा है और उसके लिए हर नेता की भूमिका तैयार की जा रही है ताकि पार्टी को मजबूती मिल सके। संगठनात्मक लिहाज से अलग-अलग क्षेत्र और अलग-अलग जाति के नेताओं को एडजस्ट कर सबको साथ लेकर चलने का संदेश भी दिया है। खास बात ये है कि इस बार हाईकमान ने हर गुट को साधा है ताकि किसी तरह का सवाल उठने की गुंजाइश ना रहे। 2022 में जब नेतृत्व में बदलाव किया था तब गढ़वाल की अनदेखी का आरोप लगा था। इसे लेकर कुछ नेताओं ने सवाल भी उठाए, शायद उससे सबक लेकर ही इस बार सियासी संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा सबसे बड़ा संदेश ये है कि बड़े नेताओं को दूसरे राज्यों का काम सौंपकर उन्हें फिलहाल उत्तराखंड की राजनीति से कुछ वक्त के लिए दूर करने की कोशिश की गई है। ताकि बयानबाजी ना हो और करन माहरा बिना किसी दबाव के बेहतर तरीके से काम कर सकें। खास तौर पर प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल को नई जिम्मेदारी देना यही बताता है। क्योंकि दोनों ही नेता पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और 2022 से खाली बैठे हैं। इस बीच कई ऐसे मसले भी हुए जिसमें एसा महसूस किया गया कि शायद करन माहरा को टारगेट किया जा रहा है जिससे वो असहज हुए और काम करने में भी ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऐसे में अगर बड़े नेता दूसरे राज्यों में अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे तो उत्तराखंड में विवाद और हितों का टकराव होने के आसार कम हो जाएंगे। मतलब करन माहरा को काम करने और खुद को साबित करने का पूरा मौका मिलेगा।
हालांकि जिम्मेदारी वाले सीन से हरीश रावत पूरी तरह साइड लाइन हैं। ऐसे में क्या ये भी माना जाए कि हाईकमान अब उत्तराखंड में हरीश रावत की जगह नई लीडरशिप तैयार करने पर फोकस कर रहा है? क्या 2017 और 2022 की हार के बाद हरीश रावत को कांग्रेस हाइकमान हाशिए पर डालने का फैसला ले चुका है? क्या अब 2024 में भी हरीश रावत की भूमिका सीमित हो जाएगी। इन हालात में हरीश रावत क्या करेंगे ये भी कांग्रेस की राजनीति के लिहाज से बेहद दिलचस्प होगा।
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