केन्द्रीय वन मंत्री भूपेन्द्र यादव उत्तराखंड में वनाग्नि के बढ़ते प्रकोप पर चिंता करने और स्थिति का आकलन करने के लिए उत्तराखंड आये और हमारे कुछ जंगलों को उन्होंने देखा भी। चीड़ पर उन्होंने कुछ चिंता भी प्रकट की, हमने चीड़ के प्रकोप को रोकने के लिए एक प्रपोजल जिसका पर्यावरणविदों ने यहां से लेकर लंदन तक बड़ा विरोध किया कि प्रत्येक रेंज में हम कुछ क्षेत्र को छांटकर चीड़ के वृक्षों का कटान करेंगे, उनके स्थान पर मिश्रित प्रजाति के चौड़ी पत्ती के वृक्षों का रोपण करेंगे। जब इस प्रपोजल का विरोध हुआ तो हमने चीड़ के पेड़ों की लॉपिंग अर्थात टहनियां की छंटाई जो राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, ताकि चीड़ की पत्तियां कम हों, हमने पिरूल को इकट्ठा करने और पिरूल के साथ ठीठों को इकट्ठा करने ताकि उसके बीजों का प्रसारण न हो और चीड़ के पत्ते आज बढ़ाने का कारण न बनें उसके खरीद की योजना बनाई और मुझे खुशी है कि इस सरकार ने खरीद मूल्य बढ़ा दिया, हमने उसको मनरेगा एक्टिविटी के अंदर भी सम्मिलित करवाने का प्रपोजल केंद्र सरकार को भेजा। हमने उसके अलावा चाल-खाल व ट्रेंचेज बनाएं भी बनाए, क्योंकि जंगलों में जब तक आद्रता नहीं बढ़ेगी और चीड़ से पैदा होनी वाली अम्लीयता का नियंत्रण नहीं होगा, चीड़ और सागवान दोनों से अम्लीयता फैल रही है, मिश्रित वन समाप्त हो रहे हैं, जब तक इस अम्लीयता को घटाया नहीं जाएगा वनाग्नि को रोकना संभव नहीं है और मुझे लगता है कि केन्द्रीय वन मंत्री जी ने जो संज्ञान लिया है, वह गहराई से यहां के जंगलों का जो दर्द है उसको समझेंगे और उसके निदान की योजना बनाएंगे। उन्होंने एक बयान और दिया है कि वनाग्नि को बिना जन समर्थन के सहयोग के नहीं रोकी जा सकती है, बहुत सही बात! लेकिन जन सहयोग मिल क्यों नहीं रहा है, जो पहले स्वस्फूरित तरीके से प्राप्त होता था, क्योंकि जंगलों में गांव के जो हक-हकूक थे, चुगान के लिए पत्तियां इकट्ठा करने की जो अधिकार थे, उनको वन विभाग ने समाप्त कर दिया, उसकी अनुमति अब नहीं दी जा रही है तो निश्चय ही जब आप ऐसा करेंगे, तो जन सहयोग आपसे विमुख होगा।
मैं उम्मीद करता हूं कि केन्द्रीय वन मंत्री जी, उत्तराखंड के वन मंत्री जी और राज्य के मुख्यमंत्री जी मेरी इस अनुभव जन्य सूचना का संज्ञान लेंगे और कुछ कदम उठाने की जो कोशिशें हो रही हैं उनको और विस्तारित व घनीभूत करेंगे।
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