पेरिस ओलंपिक की शूटिंग स्पर्धा में कांस्य जीतने वाले स्वप्निल ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में भी कांस्य पदक जीता। उत्तराखण्ड के खेल माहौल पर उन्होंने कहा कि ‘यहां पाॅजिटिव वाइब्स है’। दीपिका कुमारी भी पेरिस ओलंपिक में पदक जीतते-जीतते रह गई थीं, लेकिन उन्होंने तीरंदाजी में बहुत बड़ा मुकाम हासिल किया है। दीपिका ने भी उत्तराखण्ड को खूब सराहा है।
महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स काॅलेज देहरादून की त्रिशूल शूटिंग रेंज से स्वप्निल भी प्रभावित नजर आए। शूटिंग के स्टार खिलाड़ी सरबजोत की तरह उन्होंने भी रेंज को बहुत बढ़िया बताया। स्वप्निल ने कहा कि शूटिंग रेंज का मैनेजमेंट बहुत अच्छा है। लाइट, ग्रीनरी बेहतरीन है जिससे स्कोरिंग अच्छी हो रही। उन्होंने कहा कि अब शूटिंग सिर्फ अमीरों का खेल नहीं रह गया है।
उन्होंने कहा कि खेलोे इंडिया खेलो जैसे आयोजन के बाद अब हर तबके का योग्य बच्चा आगे आ सकता है। ओलंपिक खेलने के बाद राष्ट्रीय खेल में उतरने में उन्हें कोई हिचक नहीं हुई। खेल हर स्थिति में खेल होता है और हारना जीतना लगा रहता है। खेल में हार बहुत कुछ सिखाती है। उन्होंने कहा कि सरबजोत हारने के बावजूद यहां से सीख कर गया होगा। राष्ट्रीय खेलों में स्वप्निल महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
दीपिका कुमारी की गिनती देश के शीर्ष तीरंदाजों में होती है। राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम के मैदान में अभ्यास के दौरान वह उतनी ही ऊर्जावान दिखती हैं, जितना कि कोई नया खिलाड़ी दिखता है। दीपिका ने कहा कि सफलता के लिए समर्पण और अनुशासन दो मूलमंत्रों को अपनाना जरूरी है।
दीपिका ने बताया कि जब मैने खेलना शुरू किया, तब आर्चरी को कोई नहीं जानता था। बताना पड़ता था कि तीरंदाजी वो खेल है, जो महाभारत में योद्धा किया करते थे। मगर अब स्थिति बदल रही है। दीपिका ने कहा कि उनको पिछले 12-14 वर्षों में आर्चरी को लोग जानने लगे हैं। अब खेलों के विकास के लिए बहुत काम हो रहा है। दीपिका कुमारी राष्ट्रीय खेलों में झारखंड की तरफ से खेल रही हैं।
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