26 December 2025

Pahad Ka Pathar

Hindi News, हिंदी समाचार, Breaking News, Latest Khabar, Samachar

मनरेगा का नाम बदलने पर गणेश गोदियाल ने उठाए सवाल, मोदी सरकार पर बोला हमला

मनरेगा का नाम बदलने पर गणेश गोदियाल ने उठाए सवाल, मोदी सरकार पर बोला हमला

उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का नाम बदले जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भाजपा सरकार जोर-जोर से ढोल पीट कर इस बात का प्रचार कर रही है कि भाजपा सरकार ने मनरेगा योजना का नाम बदल दिया है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट के इस बयान का कि कांग्रेस पार्टी इस नाम का विरोध कर रही है, पर भी कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि भाजपा केवल नाम बदलने का खेल खेल रही है तथा गरीबों के लिए बनाई गई रोजगार गारंटी की योजना को भी धार्मिक चोला पहनाने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि अच्छा होता अगर केंद्र की भाजपा सरकार नाम बदलने के स्थान पर गरीबों के लिए मनरेगा जैसी दूसरी योजना लाती तो हम उसका स्वागत करते परन्तु भाजपा केवल पुरानी योजनाओं का नाम बदल कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर रही है, अपनी सरकार की 12 साल की उपलब्धियों के नाम पर उनके पास जनता को बताने के लिए कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी को ऐतराज किसी नाम पर नहीं है परन्तु भाजपा सरकार जिस प्रकार केवल नाम बदलने का खतरनाक खेल खेल रही है उस पर कांग्रेस पार्टी को ऐतराज है।

See also  धामी कैबिनेट की बैठक में लिए गए अहम फैसले

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मनरेगा योजना देश के करोड़ों लोगों के रोजगार का कानूनी अधिकार है और भाजपा सरकार का यह निर्णय रोजगार के अधिकार कानून को कमजोर करने और भारत के सबसे जाने-माने कल्याणकारी कानून से महात्मा गांधी का नाम और उनके मूल्यों को मिटाने की एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश कर रही है। उन्होंने कहा कि जिस योजना को भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट कांग्रेस पार्टी की विफलताओं का स्मारक बता रहे हैं, उनकी केन्द्र सरकार उसी योजना का नाम बदल कर जी राम जी रख कर योजना का श्रेय भी लेना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक जीवन में सुचित आवश्यक है परन्तु राज्य के लिए यह शर्म की बात है कि जो योजना तत्कालीन प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह जी ने गरीबों के लिए बनाई थी उसी मनरेगा योजना का पैसा भाजपा के एक विधायक ने सालों तक डकारा है यह राज्य में भ्रष्टाचार की एक बानगी है तथा इस पर भाजपा अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट को पार्टी की ओर से स्पष्टीकरण देना चाहिए।

See also  सीएम ने उत्तरकाशी में किया शीतकालीन महोत्सव में प्रतिभाग

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा कि मनरेगा कानून एक संघर्ष से पैदा हुआ था और इस कानून में ’’हर हाथ को काम दो, काम का पूरा दाम दो’’ का वादा था। मनरेगा कानून ने ग्रामीण भारतीयों को काम मांगने का कानूनी अधिकार दिया तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिन का रोजगार पक्का किया। गांधीजी की विरासत, मजदूरों के अधिकारों और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी पर यह मिला-जुला हमला, अधिकारों पर आधारित कल्याणकारी काम को खत्म करने और उसकी जगह केंद्र से कंट्रोल होने वाली चौरिटी लाने की भाजपा-आरएसएस की बड़ी साजिश को सामने लाता है तथा लोगों के काम के अधिकार को खत्म करने की भाजपा और आरएसएस की साजिश है। उन्होंने कहा कि गांधीजी श्रम की गरिमा, सामाजिक न्याय और सबसे गरीब लोगों के प्रति राज्य की नैतिक ज़िम्मेदारी का प्रतीक थे, रोजगार एक्ट से महात्मा गांधी का नाम हटाने का जानबूझकर लिया गया फैसला भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की गांधी विरोधी विचारधारा को दर्शाता है। यह नाम बदलना बीजेपी-आरएसएस की गांधीजी के मूल्यों के प्रति लंबे समय से चली आ रही बेचौनी और अविश्वास को दिखाता है और रोज़गार गारंटी कानून को खत्म करना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का लोगों पर केंद्रित कल्याणकारी कानून से जुड़ाव मिटाने की एक कोशिश है।

See also  क्रिसमस की पूर्व संध्या पर कांग्रेस नेताओं ने देहरादून में बांटे कंबल

गणेश गोदियाल ने कहा कि मनरेगा योजना में कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन डॉ. मनमोहन सिंह सरकार ने यह सुनिश्चित किया था कि केंद्र सरकार मज़दूरी के लिए फंडिंग की मुख्य ज़िम्मेदारी उठाएगी, जिससे यह एक सच्ची राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी बन गई थी परन्तु भाजपा सरकार द्वारा लाया जा रहा नया बिल इस ज़िम्मेदारी को समाप्त करता है। केन्द्र की भाजपा सरकार का नया बिल मनरेगा द्वारा दिए गए काम के कानूनी अधिकार को खत्म कर देता है तथा मांग-आधारित, वैधानिक हक को एक केंद्र द्वारा नियंत्रित योजना में बदल देता है जो रोज़गार की कोई गारंटी नहीं देता। यह आश्वासन भी नहीं देता कि जब लोगों को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होगी, तब काम दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में इस योजना का वित्तीय बोझ राज्यों पर डाल देता है, आवंटन पर सीमा लगाता है और मांग-आधारित कार्यक्रम की नींव को ही कमजोर करता है। यह संघवाद को कमजोर करता है और राज्यों की वित्तीय बाधाओं के कारण काम की मांग को दबाने के लिए मजबूर करता है।