उत्तराखंड कॉमन सिविल कोड बिल पारित हो गया है, इसको आवश्यक संवैधानिक अनुमति भी मिल जाएगी। एक लक्ष्य और एक उपलब्धि साफ है। लक्ष्य है राज्य में उपलब्ध विहीन सरकार को लोकसभा चुनाव में जनता के बीच जाने और अपनी पीठ ठोकने का एक मुद्दा मिल गया है।
उपलब्धि है कि धामी उत्तराखंड भाजपा के एक क्षत्र नेता के रूप में स्थापित हो गये हैं। अब उम्मीद की जा सकती है कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की आशा लगाए हुये लोग अब खट्टे अंगूर कहकर UCC का ढोल पीटने में लग जाएंगे।
जनता को क्या फायदा?
उत्तराखंड को क्या मिला? क्या इस विधेयक के पारित होने से लड़के-लड़कियों के सामने जो बेरोजगारी का प्रश्न है उसका कुछ समाधान निकलेगा? निरंतर बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार क्या नियंत्रित होगा? क्या आटा, दाल, चीनी, सब्जी कुछ सस्ती होंगी? महिलाओं और दलित वर्ग पर हो रहे अत्याचार क्या रूकेंगे? उत्तराखंड विधानसभा और विपक्ष के पास लोकसभा चुनाव से पहले एक सशक्त अवसर था, जब अंकिता हत्याकांड में अंकिता की माताश्री द्वारा इंगित वीआईपी को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का और महिला अत्याचार, राज्य की कानून व्यवस्था के परिपेक्ष में सवाल खड़े करने का, उद्यान और कृषि विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई के जांच के आदेश दिए जाने तथा खनन को लेकर सरकार पर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट की तर्कपूर्ण टिप्पणी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में आ रही निरन्तर गिरावट आदि कई मुद्दे थे।
बड़ी कुशलता से जनता के इन मुद्दों को कॉमन सिविल कोड की आड़ में ओझल कर दिया गया है। वस्तुतः इस विधेयक के जल्दी बाजी में पारण से हमारी पारिवारिक व्यवस्था में जो प्रेम और पारिवारिक मूल्यों पर आधारित होती है उसमें तनाव बढ़ेंगे। पहले से छोटी हो रही खेती की जोतें और छोटी होंगी, मायके की संपत्ति पर लड़की को अधिकार जताने के लिए ससुराल में बहू के ऊपर दबाव बढ़ेंगे, लड़के-लड़कियों सहित राज्य के नागरिकों को जो बाहर रह रहे हैं कानून के दोहरेपन का सामना करना पड़ेगा, हमारे राज्य की 13-14 प्रतिशत हिस्से को यह शिकायत करने का अवसर मिलेगा कि हमसे पूछा ही नहीं गया, हमारे वैत्यिक कानूनों में हस्तक्षेप कर दिया गया, उनमें बदलाव लाया गया। जब UCC-UCC, UCC का शोर थम जायेगा तो आप पायेंगे कि आप और उत्तराखंड इस बिल के पारण के बाद एक कदम पीछे हुआ है।

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