उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं की दिल्ली में हुई बैठक के बाद कई संकेत हैं, कई संदेश हैं और कई सवाल भी हैं। करीब 4 घंटे तक उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंथन करते रहे। बैठक में लोकसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा हुई और कई कार्यक्रम तय भी हुए। मगर बंद कमरे में जो चर्चा हुई वो काफी दिलचस्प रही। सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय नेताओं के सामने ही गुटबाजी का गुबार निकला, शिकायतों का लंबा सिलसिला चला और संगठन को सहयोग ना मिलने का दर्द भी छलका। 2017 और 2022 में विधानसभा चुनाव की हार साथ ही 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में खाता ना खोल पाने वाली कांग्रेस आगे क्या और कैसे करेगी इस पर जब चर्चा हुई तो प्रदेश अध्यक्ष अपना दर्द बयां करने लगे।
शिकायत वाली सियास
सूत्रों का दावा है कि करन माहरा ने खुलकर सीनियर नेताओं की शिकायत की। करन ने संगठन के कार्यक्रमों से बड़े नेताओं के दूरी बनाने, मुद्दों पर साथ ना आने, बयानबाजी करने, गुटबाजी को हवा देने समेत कई ऐसे मुद्दे उठाए जो कांग्रेस की सियासी सेहत खराब कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने अपना दुखड़ा रोया, बड़े नेताओं के सामने ही सबकी पोल खोलने की कोशिश की तो आलाकमान ने भी सबके लिए लक्ष्मण रेखा खींच दी। सूत्र बताते हैं कि सभी नेताओं को मिलकर काम करने की नसीहत दी गई। साथ ही फिजूल की बयानबाजी ना करने, अपने राजनीतिक हितों से ज्यादा पार्टी को मजबूत करने पर ध्यान देने की नसीहत भी आलाकमान ने दी। इशारों ही इशारों में हरीश रावत, प्रीतम सिंह को भी अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया। सभी पहलुओं पर खुलकर चर्चा हुई। साथ ही लोकसभा चुनाव के टिकट को लेकर जिस तरह का टकराव अभी से देखने को मिल रहा है उसे लेकर भी दिल्ली दरबार ने नारजगी जाहिर की। खास तौर पर हरक रावत और हरीश रावत हरिद्वार से चुनाव लड़ने को लेकर आमने-सामने हैं। दोनों नेताओं ने बीते दिनों जमकर बयानबाजी की थी। हरक रावत तो बार-बार हरिद्वार से लड़ने का डंका बजा रहे हैं और हरीश रावत की पिछली हारों का हवाला देकर कई बार निशाना भी साध चुके हैं। शायद इसीलिए आखिरी मौके पर हरक को मीटिंग में बुलाया गया ताकि इस तरह के बयानों से बचा जा सके और सभी नेता एक होकर काम कर सकें। आलाकमान ने बैठक में ही सार्वजनिक तौर पर फटकार भी लगाई और संगठन के साथ खड़े रहने, संगठन के हर कार्यक्रम, हर बैठक में हिस्सा लेने को भी कहा।
संकेत, संदेश और सवाल
सकारात्मक पहलू ये है कि कांग्रेस अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है और उत्तरखंड के नेताओं को जो संदेश दिया गया है वो अनुशासन का है। संकेत ये है कि नेता चाहे कितने भी बड़े हों मगर उन्हें संगठन के साथ चलना भी होगा और संगठन को सपोर्ट भी करना होगा।
अब सवाल ये है कि जिस तरह शिकायत की गई क्या उससे समाधान निकल जाएगा? सवाल ये भी कि क्या सीनियर नेताओं को साइडलाइन कर सफलता मिल पाएगी? कांग्रेस जिस तरह आंतरिक कलह से जूझ रही है क्या उससे बाहर निकलने का रास्ता मिल पाएगी? एक बड़ा सवाल क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों का भी है। कांग्रेस का एक गुट गढ़वाल की अनदेखी का मुद्दा बार-बार उठाता रहा है। क्योंकि कांग्रेस में जिस तरह तीनों पद कुमाऊं मंडल की झोली में हैं उसे लेकर कई नेताओं ने बयान दिए हैं। इसके अलावा किसी ब्राह्मण नेता को पद ना दिए जाने का मसला भी है। यानि संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है। अब लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस इस समस्या को दूर करने के लिए क्या कदम उठाएगी इंतजार इसका भी है। मगर इतना तय है कि दिल्ली वाली बैठक के बाद भले ही सार्वजनिक मंजों पर एकजुटता दिखाने की कोशिश हो मगर अंदरखाने टकराव पहले से ज्यादा बढ़ेगा। नेताओं की अपनी-अपनी लॉबी है जिनमें मतभेद और मनभेद दोनों ही हैं। मतलब साफ है कि दिल्ली से जो भी आदेश आए देहरादून में उस पर कितना अमल होगा ये उत्तराखंड के नेताओं को ही तय करना है।
More Stories
चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाने की कसरत में जुटी सरकार
केदारनाथ उपचुनाव की ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम में रखीं गईं
नतीजों से पहले मनोज रावत दिया अहम संदेश