उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है। जिसकी सबसे बड़ी वजह है रोजगार का ना मिलना, मगर बदलते वक्त के साथ अब स्वरोजगार के जरिये पहाड़ के लोग भी पलायन को मात देना सीख रहे हैं।
धीरे धीरे ही सही अब जाकर पर्यटन विभाग के सहयोग से पहाड के गांव में होमस्टे योजना परवान चढ़ती नजर आ रही है। इस योजना के अंतर्गत बने ये होमस्ट लोगों के लिए रोजगार का जरिया बनने लगी है। ऐसा ही एक होमस्टे पर्यटको को खूब भा रहा है। लोग यहां रहने के लिए एडवांस बुकिंग करने लगे है। सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक के वाण गांव में हीरा सिंह बिष्ट का होमस्टे पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा है। रूपकुंड, आली बुग्याल, वेदनी बुग्याल, ब्रह्मताल, मोनाल टाॅप ट्रैक जाने वाले टूरिस्ट इस होमस्टे में ठहर रहें हैं। पर्यटन विभाग के सहयोग से बना ये होमस्टे लोगो के लिए एक उदाहरण भी है। होमस्टे के संचालक व समाज सेवी हीरा सिंह गढ़वाली का मानना है कि होमस्टे के जरिए लोगों की आर्थिकी स्थिति मजबूत होगी और घर में ही रोजगार भी मिलेगा। होमस्टे में ठहरने वाले पर्यटक भी पहाड़ की संस्कृति, खान पान को करीब से जान सकें।
हिमालय का अनमोल ‘हीरा’, हर कोई है हीरे की सादगी, व्यवहार और अतिथि देवाः भव का कायल…
हीरा सिंह गढ़वाली चाय की दुकान से शुरू हुये संघर्ष का एक सफल ट्रेकिंग गाइड तक जा पहुंचा। हिमालय के प्रति सदैव चिंतनशील और जानकारी का अथाह भंडार लिए आज देश के कोने कोने से हर कोई इस हीरे की सादगी, व्यवहार और अतिथि देवो भव: का कायल है।
संघर्षमय रहा जीवन, ट्रैक पूरा करने के बाद पर्यटक हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते…..सीमांत जनपद चमोली के वाण गाँव के ट्रेकिंग गाइड हीरा सिंह बिष्ट ‘गढ़वाली विगत 15 बरसों से ट्रेकिंग का कार्य कर अपने 8 सदस्यीय परिवार की हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाता आ रहा है। 6 साल पहले पिताजी की असमय मृत्यु नें हीरा को अंदर तक हिला कर रख दिया था क्योंकि हीरा अपने पिताजी के बेहद करीब था। परिवार की जिम्मेदारी नें हीरा को कभी टूटने नहीं दिया। धीरे धीरे हीरा ने अपने आपको संभाला और एक बार फिर से ट्रेकिंग को रोजगार का जरिया बनाया। आज हीरा के पास मुंबई से लेकर राजस्थान, गुजरात, बैंगलुरू, मध्य प्रदेश, बंगाल सहित दर्जनों प्रदेशों के ट्रेकर, ट्रेकिंग के लिए पहुंचते हैं और ट्रैक पूरा करने के बाद हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते। वाण गाँव मे हीरा नाम एक दर्जन से अधिक लोगों के हैं। इसलिए हीरा नें अपना नाम हीरा सिंह बिष्ट ‘गढ़वाली’ रखा है। और सब लोग हीरा को इसी नाम से जानते और पहचानते हैं।
बेहद साधारण परिवार से तालुक रखने वाले हीरा का बचपन काफी कठिनाई में बीता। बस जैसे तैसे आठवीं तक की पढ़ाई की। अब आगे पढ़ाई करने के लिए घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हीरा के पिताजी छोटा मोटा कार्य कर बस किसी तरह से परिवार का गुजर बसर करते थे। हीरा आगे पढना चाहता था तो उसने 8 वीं की ग्रीष्मकालीन अवकाश में सैलानियों को घूमाना शुरू किया। जिससे होने वाली आमदनी से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई जारी रखी साथ ही अपने भाइयों और बहन की पढ़ाई में भी हाथ बटाया। 12 वीं के बाद पिताजी को अच्छा रोजगार मिलने से बीए की पढ़ाई हीरा नें देहरादून से की।
हिमालय के प्रति प्यार खींच लाया वापस, हिमालय की कंदराओं में ढूंढा रोजगार ..
देहरादून में हीरा का कभी भी मन नहीं लगता था। उसे तो बस अपना पहाड़ ही प्यारा लगता था। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद हीरा ने देहरादून में रोजगार ढूंढने की जगह वापस अपने गांव जाने का फैसला किया। गांव आने के बाद रोजगार के साधन न होने से हीरा मायूस नहीं हुआ। सबसे पहले हीरा ने चाय की दुकान खोली, फिर छोटा सा ढाबा, और पर्यटकों को रहने की व्यवस्था का बोर्ड दुकान के बाहर लगाया। जिससे हीरा की अच्छी खासी आमदनी होने लगी। फोटोग्राफी के शौक ने हीरा को इलाके का फोटोग्राफर बना दिया था। हीरा शादी ब्याह से लेकर अन्य आयोजनों में फोटोग्राफी करने लगा। इस दौरान हीरा नें एक कम्प्यूटर खरीद लिया और कुछ छोटे मोटे कार्य करने लगा। आज हीरा काॅमन सर्विस सेंटर भी चलाता है। जिसमें गांव के लोगों के आवश्यक प्रमाण पत्र बनते हैं। यही नहीं हीरा बुरांश के फूलों से बुरांश का जूस निकालने का कार्य भी करता है।
मन में बसा है हिमालय, आज हैं सफल ट्रैकिंग गाइड ..
हीरा का मन दुकान में ज्यादा नहीं लगा उसने अपने छोटे भाई नरेंद्र को दुकान पर बैठाया और ट्रेकिंग में हाथ अजमाने की सोची। ट्रैकिंग के लिए सामान की आवश्यकता थी लेकिन आर्थिक तंगी आडे आ गई। थक हारकर बैंक से 35 हजार का कर्ज लिया और पांच टैंट, 10 सिलिपिंग बैग और अन्य सामान खरीदा। जिसके बाद शुरू हुआ हीरा का असली ट्रेकिंग अभियान। शुरू शुरू में दिक्कतों का सामना हुआ लेकिन जो ग्रुप एक बार आया उसने दूसरे ग्रुप की बुकिंग हीरा को दिला दी और हीरा का ट्रेकिंग गाइड का कार्य चल निकला। आज हीरा ट्रेकिंग से एक सीजन में अच्छा खासा मुनाफा कमा लेता है। साथ ही 30 से अधिक लोगों को रोजगार भी दिलाता है। हीरा ट्रेकिंग के जरिए सैलानियों को बेदनी बुग्याल ,ऑली बुग्याल, रूपकुंड, ब्रह्मताल, भैंकलताल, फूलों की घाटी, पिंडारी ग्लेशियर सहित कई पर्यटक स्थलों का भ्रमण कराता है। जिसमें सैलानियों को स्थानीय परम्परागत भोजन खिलाता है साथ ही पहाड़ की लोकसंस्कृति से रूबरू करवाता है। हीरा पर्यटकों को पहाड़ के परम्परागत खेल, पत्थर-पिडो, बट्टी, लुकाछुपी खिलाते हैं जिसे पर्यटक बेहद पंसद करते है।
वास्तव में देखा जाय तो अगर सच्चे मन, लगन और ईमानदारी से कोई कार्य किया जाय तो सफलता जरूर मिलती है। हिमालय मे रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हीरा नें दिखा दिया की इस भीड़ में वो क्यों सबसे अलग है और अपनी चमक बिखेरे हुये है। देश के कोने कोने से आने वाले सैलानीयों के लिए इस अनमोल हीरा का विकल्प नहीं है।
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