मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज पीएम मोदी के साथ बिजी हैं वहीं कांग्रेस समेत 6 विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर निशाना साध है। उत्तराखंड कांग्रेस, CPI, CPI(M), CPI(ML), समाजवादी पार्टी और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के नेताओं ने खुला खत लिखकर मलिन बस्तियों को ले कर सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाया। विपक्षी दलों का कहना है कि आई हुई खबरों के अनुसार, सात साल में शहरों में बस्तियों के नियमितीकरण और पुनर्वास अधिनियम पर राज्य सरकार ने कोई काम ही नहीं किया है। ये कानून पिछली कांग्रेस सरकार के समय में बनाया गया था लेकिन हैरतअंगेज बात है कि जहाँ तक देहरादून शहर की बात है, 2017 और 2021 के बीच में इस कानून के अमल के लिए एक बैठक तक नहीं की गई। अभी तक मात्र तीन ही बस्तियों का सर्वेक्षण हुआ है। किसी भी बस्ती के नियमितीकरण या पुनर्वास पर चर्चा तक नहीं की गयी है। लापरवाही का आलम यह है कि 2017 में शहर का क्षेत्रफल तीन गुना से ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन आज तक नए क्षेत्रों में बसे मज़दूर बस्तियों का चिन्हीकरण तक नहीं किया गया है। अगस्त 2022 और अभी हाल ही में पुनः उच्च न्यायालय की और से बस्तियों को हटाने के आदेश आए हैं और सरकार उन आदेशों के बहाने “अतिक्रमण हटाओ अभियान” चला कर आम लोगों को प्रदेश भर में प्रताड़ित कर रही है। सरकार अपनी ही नाकामियों को छुपाने के लिए जनता को अपराधी ठहरा रही है, गरीब निरीह जनता के साथ इससे बड़ा छलावा नही हो सकता।
विपक्ष की सरकार से मांग
खुल खत लिखकर विपक्षी दलों ने इन मांगों को उठाया: सरकार अध्यादेश लाये कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी को बेघर नहीं किया जायेगा,क्योंकि किसी भी परिवार को बेघर करने से बच्चों, महिलाओं और बुज़ुर्गों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है; सरकार युद्धस्तर पर 2016 के अधिनियम पर अमल करे; सरकार प्रदेश भर में वन अधिकार अधिनियम और अन्य नीतियों द्वारा लोगों के हक़ों को सुनिश्चित करे; सरकार न्यायालय के सामने चल रही याचिकाओं में हकीकत और सही क़ानूनी राय रखे।
सरकार के नाम खत में क्या है?
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तराखंड सरकार
विषय: बिना वैकल्पिक व्यवस्था के लोगों को बेघर किए जाने हेतु
महोदय,
पिछले कुछ महीनों में उत्तराखंड राज्य के विभिन्न शहरों ख़ास तौर पर देहरादून जिले की स्थिति को लेकर आपका ध्यान आकर्षित करना था।
हाल ही में राज्य सरकार ऋषिकेश और अन्य क्षेत्रों में सैकड़ों मकानों को ध्वस्त करने का मन बना रही है,सरकार का यह कदम बेहद संवेदनहीन और अमानवीय प्रतीत होता है। उससे भी गंभीर बात यह है कि सरकार कानून और संविधान को ताक पर रखकर इस तरह के कृत्य को अंजाम देना चाहती है। महोदय, 3 सितम्बर को “राष्ट्रीय सहारा” एवं “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” अख़बारों में आई हुई खबरों के अनुसार, सूचना के अधिकार द्वारा पता चला है कि शहरों में बस्तियों के नियमितीकरण और पुनर्वास अधिनियम पर राज्य सरकार ने कोई काम ही नहीं किया है। यह कानून पिछली कांग्रेस सरकार के समय में बनाया गया था लेकिन जहाँ तक देहरादून शहर की बात है, 2017 और 2022 के बीच में इस कानून के अमल के लिए एक बैठक तक नहीं रखी गई। हैरतअंगेज बात है कि देहरादून में अभी तक मात्र तीन ही बस्तियों का सर्वेक्षण हुआ है। किसी भी बस्ती का नियमितीकरण या पुनर्वास पर चर्चा तक नहीं की गयी है। लापरवाही का आलम यह है कि 2017 में देहरादून नगर पालिका क्षेत्र में 72 गांवों को शामिल किया गया था और शहर का क्षेत्रफल तीन गुना से ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन 2017 से आज तक नए क्षेत्रों में बसे मज़दूर बस्तियों का चिन्हीकरण तक नहीं किया गया है। हम सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि 2018 में जन आंदोलन के बाद सरकार ने एक अध्यादेश द्वारा मलिन बस्तियों को तीन साल तक सुरक्षा दी थी। उस समय जब सवाल उठाया गया था कि तीन साल नहीं, स्थायी समाधान की ज़रूरत है, सरकार ने कहा था कि तीन साल के अंदर वे 2016 के अधिनियम पर अमल पूरा कर लिया जाएगा – जिस बात को अध्यादेश की धारा 4(1) में भी अंकित किया गया था,लेकिन ज्ञात हुआ है कि 2018 से 2021 तक सरकार ने इस गंभीर सवाल पर एक अदद बैठक तक रखना गवारा नहीं समझा।
अगस्त 2022 और अभी हाल ही में पुनः उच्च न्यायालय की और से बस्तियों को हटाने के आदेश आए हैं और सरकार उन आदेशों के बहाने “अतिक्रमण हटाओ अभियान” चला कर आम लोगों को प्रदेश भर में प्रताड़ित कर रही है। पक्षपात इस हद तक हो रहा है कि बड़े बिल्डर या सरकार के खुद के विभागों द्वारा किये गए अतिक्रमण पर कोई कारवाई नहीं दिखाई दे रही है। सरकार अपनी ही नाकामियों को छुपाने के लिए जनता को अपराधी ठहरा रही है, गरीब निरीह जनता के साथ इससे बड़ा छलावा नही हो सकता।
इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार तुरंत अध्यादेश लाये कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी को बेघर नहीं किया जायेगा,क्योंकि किसी भी परिवार को बेघर करने से बच्चों, महिलाओं और बुज़ुर्गों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
– सरकार युद्धस्तर पर 2016 के अधिनियम पर अमल करे। अगर लोग खतरनाक या ज़रूरी जगहों में रह रहे हैं, पांच किलोमीटर की दूरी के अंदर उनका पुनर्वास किया जाये।
– सरकार प्रदेश भर में वन अधिकार अधिनियम और अन्य नीतियों द्वारा अभियान चलाये जिससे लोगों के ज़मीनों, वनों एवं घरों पर उनके हक़ सुनिश्चित हो पाए।
– सरकार न्यायालय के सामने चल रही याचिकाओं में हकीकत और सही क़ानूनी राय रखे। न्यायालय के आदेश को लोगों को बेघर करने का बहाना या आड़ ना बनाए।
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