हरीश रावत ने चार धाम यात्रा प्रबंधन पर सवाल उठाए हैं। हरदा ने कहा है इस वर्ष चार धाम यात्रा की शुरुआती दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु, हरिद्वार, ऋषिकेश और ढेर सारे लोग सीधे चार धामों में भी पहुंचे। स्पष्ट मार्गदर्शन के अभाव में यात्रा प्रारंभिक चरण में अव्यवस्थाओं से ग्रस्त हो गई है। घबराई हुई सरकार ने ऐलान किया कि केवल पंजीकृत यात्री ही चार धामों तक जा सकेंगे। इसके विरोध में यात्रा मार्ग के व्यापार संघों, पंडा-पुजारियों ने आवाज उठाई, फिर सरकार ने घोषणा की कि बिना पंजीकरण के भी यात्री जा सकेंगे, फिर आदेश जारी हुआ कि पंजीकरण वाले ही यात्री जा सकेंगे। एक अनुमान के अनुसार लगभग 2 लाख यात्री यात्रा मार्गो जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग आदि स्थानों से बिना दर्शन किए वापस लौट आए। लोगों का कहना है कि कुछ यात्री धामों में पहुंच चुके थे और वहां की अव्यवस्था व पंजीकरण न होने के कारण बिना दर्शन किए वापस लौट आए। राज्य भर में एक हल्ला उठा और देश में भी लोगों ने आवाज उठाई, परेशान सरकार ने फिर बिना पंजीकरण के ही यात्रा में जाने की अनुमति दे दी। यहां फिर से सरकार से चूक हुई उन्होंने रात्रि कालीन परिवहन की भी अनुमति दे दी। हजारों की संख्या में टैक्सी, टेंपो ट्रेवलर्स के माध्यम से लोग बिना मार्ग में रुके सीधे श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री पहुंचे। इस वर्ष हृदय घात आदि से मरने वाले यात्रियों की संख्या में वृद्धि का एक कारण यह भी रहा। मार्ग के पड़ावों में यात्री रुकते थे और अपने को एक-दो दिन में पहाड़ की परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लेते थे। इस बार जो यात्री सीधे यमुनोत्री, गंगोत्री, श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ पहुंचे हृदय घात से मरने वालों में ऐसे यात्रियों की संख्या अधिक रही, मार्ग दुर्घटनाएं भी इस वर्ष अधिक रही। जब तक सरकार अपने आदेश को संशोधित करती और रात्रि यातायात पर रोक लगाती, यात्रा पटरी से उतर चुकी थी।
लोगों में दिखाई दिया आक्रोश- हरीश रावत
श्री बद्रीनाथ विधानसभा उपचुनाव के दौरान मैं जोशीमठ तक गया था। रास्ते में लोगों में बड़ा आक्रोश था। मैंने अपनी फेसबुक पोस्ट में 24 घंटे यात्रा को गतिमान रखने के विरुद्ध आवाज उठाई थी, लोगों ने उसको देखा और भ्रमण के दौरान उन्होंने मेरी पोस्ट का मुझसे जिक्र किया और इस बार मैं सोनप्रयाग तक श्री केदारनाथ क्षेत्र में गया, मार्गों में जगह-जगह रूका। लोगों में यात्रा संचालन में हुई अव्यवस्था को लेकर बड़ा आक्रोश देखने को मिला। यात्रा संचालक के साथ जुड़े हुए लोगों को मेरा सुझाव है कि सितंबर में वर्षा काल के बाद फिर से बड़ी संख्या में यात्री आएंगे, इस बार उनको कटु अनुभव नहीं होना चाहिए। चार धाम यात्रा का राज्य की आर्थिकी में बहुत बड़ा योगदान है। यात्रा के दौरान लाभान्वित होने वालों की संख्या लाखों में है। लोग यात्रा मार्ग में छोटे-छोटे टेंट, झोपड़ी आदि डालकर अपनी वर्ष भर की आजीविका कमाते हैं। कई नौजवान साथी इस कमाई से अपनी शिक्षा का खर्चा उठते हैं और परिवार पर बोझ नहीं बनते हैं। राज्य और यहां तक की राज्य के बाहर के लोग भी आजीविका के लिए चार धाम यात्रा का सहारा लेते हैं। इस बार कुछ अधिकारियों ने अति उत्साह में ऐसे गैर पंजीकृत और आजीविका खोजने वाले लोगों को यात्रा मार्ग से बलपूर्वक हटाया है। राज्य के जिम्मेदार लोगों को इसका संज्ञान लेना चाहिए और जिलाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि वह आजीविका पालकों को बलपूर्वक न हटाएं। मुझे पहले भी ऐसे कई लोग मिले हैं जो भुट्टा, नींबू-पानी, केतली में चाय लेकर चाय ले लो, चाय ले लो पुकार कर यह ठंडा बेचकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। यह यात्राएं करुणा के प्रतीक शिव, विष्णु, गंगा-यमुना से जुड़ी है। इन यात्राओं को इस महात्म्य के साथ देखा, समझा और संचालित किया जाना चाहिए। चार धाम यात्रा सहित राज्य में संचालित होने वाली अन्य यात्राओं के विषय में भी एक व्यापक मार्ग निर्देशिका संबंधित अधिकारियों को दी जानी चाहिए।
2030 में क्या स्थिति होगी- हरीश रावत
मेरी इस लेख की विषय वस्तु वर्ष 2024 का यात्रा प्रबंधन नहीं है, मैंने केवल प्रसंग वश इस बार की चुनौतियों और उनके समाधान में हुई गलतियों का उल्लेख मात्र किया है। हम आगे के वर्षों में अपनी भूल-चूकों से सबक लेकर आगे बढ़ सकते हैं। मेरा ध्यान वर्ष 2030 की यात्रा का परिदृश्य बार-बार उभर करके आ रहा है। सामान्यतः भी वर्ष 2030 तक यात्रा में यात्रियों की संख्या ड्योढ़ी से अधिक हो जानी चाहिए। वर्ष 2030 तक ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाईन पूर्ण यौवन के साथ संचालित होने लगेगी। मेरा मानना है कि इससे यात्रा मार्ग में आवागमन सस्ता और सुगम हो जाएगा। हो सकता है कि वर्ष 2030 में आज की तुलना में दुगने यात्री चार धाम की तीर्थाटन के लिए आ सकते हैं। प्रश्न यह कि क्या हमारे यात्रा मार्ग और चारधाम इस चुनौती का समाधान करने के लिए सक्षम हैं? इस बार जिस तरीके से यात्रा प्रबंधन में हमारी सांसें फूली हैं, मुझे तो वर्ष 2025-26 की यात्रा की सुगमता पर भी संदेह है। सरकार और राजनीतिक हलकों में इस स्थिति को लेकर कोई चर्चा नहीं है, हम केवल कभी-कभी समाचार पत्रों की बयान बाजी और आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित हैं।
व्यवस्था सुधारना जरूरी- हरीश रावत
उत्तराखंड के देव स्थल जिनमें चार धाम भी सम्मिलित हैं, हमारे पास सम्पूर्ण मानवता जिसमें सनातन धर्मियों की धरोहर है। हमें इस समस्त यात्रा व्यवस्था को लेकर एक व्यापक बहस आधारित कार्य योजना तैयार करनी चाहिए। धन की आवश्यकता पड़ेगी, आवश्यक है हम योजना के निर्धारण में केंद्र सरकार और उसके विभिन्न विभागों में उपलब्ध विशेषज्ञों की सहायता भी लें। हमारे यह यात्रा मार्ग और गंतव्य पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बहुत संवेदनशील हैं। हम इस समय भी अवैज्ञानिक तरीके से संचालित इस यात्रा में प्रकृति की संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कभी जब प्रकृति प्रकोप दिखाती है हम तत्कालिक स्थिति के टलने के बाद प्रकृति की संवेदनाओं को भूल जाते हैं। हम यदि गलती पर गलती करते जाएंगे तो एक समय ऐसा भी आ सकता है कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से यात्रा का संचालन और कठिनतर से लगभग असंभव हो जाय। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आने से पहले ही हमें चारधामों सहित यात्रा मार्ग के प्रमुख स्थलों सहित सभी प्रमुख मंदिरों जैसे त्रिजुगीनारायण, मद्महेश्वर, तुंगनाथ आदि की भार वहन क्षमता का वैज्ञानिक आकलन करवाना चाहिए। परम पूज्य शंकराचार्य जी एवं धार्मिक व्यक्तियों से परामर्श कर यात्रा को वर्ष भर संचालित करने के प्रश्न पर पुनः विचार करना चाहिए। हमें सनातन धर्मियों की श्रद्धा भूख के साथ-साथ व्यवस्था क्षमता और इन स्थलों की धारण क्षमता का आकलन कर वार्षिक आधार पर यात्रा की योजना बनानी चाहिए। शास्त्रों में श्रद्धालुओं के लिए जिन पांच प्रयागों के महात्म्य में को उकेरा गया है, यात्रा के नियोजन में इस तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए। मंदिरों के कपाट खुलने और बंद होने की तिथियों को बढ़ाये जाने के प्रश्न पर भी जलवायु, व्यावहारिकता और आध्यात्मिकता को ध्यान में रखकर पुनः पूरी पद्धति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। यात्रा काल बढ़ाने के साथ-साथ वर्षा काल में यात्रा को और सुविधायुक्त, सुगम व सुरक्षित बनाने पर भी अभी से काम प्रारंभ किया जाना चाहिए। संबंधित पक्षों से राय-परामर्श कर यात्रा को सुगम और व्यावहारिक बनाने के प्रश्न पर भी हमको बालाजी तिरुपति या श्री वैष्णो देवी की यात्रा से भी कुछ सीखें लेनी आवश्यक हैं।
मैं अगले लेख में उत्तराखंड में संचालित कुछ और यात्राओं पर भी आपसे अपने विचार साझा करूंगा। मेरा मकसद आगे आने वाली चुनौतियों पर बहस प्रारंभ करना है। मुझे खुशी होगी यदि आपसे आलोच्यगत सुझाव मुझे मिलेंगे तो मैं उसका उपयोग इस लेख की विषय वस्तु को और उपयोगी बनाने में करूंगा।
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