गौरीकुण्ड से केदारनाथ धाम जाने हेतु तकरीबन 16 कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। यह मार्ग यहां पर आने वाले यात्रियों के लिए रोमांच के साथ-साथ चुनौतियों भरा होता है। हर किसी के चलने की क्षमता अलग-अलग होती है और यदि मौसम खराब हो जाये और बारिश हो जाये तो इस मार्ग में आवागमन करने पर चुनौती दुगुनी हो जाती है। हरेक माता-पिता अपने बच्चों को कम्फर्ट जोन (सुविधा से परिपूर्ण) रखना चाहते हैं, यही बात यहां यानि केदारनाथ धाम पैदल ट्रैक पर भी लागू होती है। माता-पिता भले ही पैदल चलें लेकिन वे अपने बच्चों को पिट्ठू यानि कण्डी से भेजते हैं ताकि बच्चों को चलना न पड़े। और ऐसे में लगभग 16-18 किमी के इस पैदल मार्ग में पिट्ठू वाले और यात्री का एक साथ चलना सम्भव भी नहीं और यही कारण बनता है आपस में बिछड़ने का।
हालांकि सम्पूर्ण पैदल मार्ग पर स्थित पुलिस चौकियों में पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती है, जिनके द्वारा इस प्रकार से खोया-पाया वाले प्रकरणों पर तत्काल आवश्यक समन्वय बनाते हुए कार्यवाही की जाती है। कल देर रात्रि को यात्रा पर आये श्रद्धालु तो केदारनाथ पहुंच गये परन्तु पिट्ठू वाले के साथ भेजी गयी उनकी 9 वर्षीय बिटिया का पता नहीं चल पाया कि वो केदारनाथ पहुंची है या कहीं पीछे रह गयी है। पुलिस बल ने अपने स्तर से केदारनाथ धाम में ढूंढखोज की तो इस बच्ची का केदारनाथ पहुंचना नहीं पाया गया। परिजनों द्वारा रास्ते में पिट्ठू में सवार अपनी बिटिया का फोटो भी लिया हुआ था, इस फोटो के सहारे ज्ञात हुआ कि उक्त पिट्ठू वाले के पास उनकी बिटिया सकुशल है तथा तेज बारिश के चलते वह सुरक्षित स्थान पर रुका था। पैदल पड़ावों पर तैनात पुलिस बल के आवश्यक समन्वय से उक्त बालिका को केदारनाथ में उसके पिता के सुपुर्द किया गया। जिनके द्वारा पुलिस बल का आभार प्रकट किया गया।

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