धराली में 147 लोगों के लापता होने संबंधी कर्नल अजय कोठियाल के बयान ने उत्तराखंड की राजनीति में ज़बरदस्त भूचाल ला दिया है। यह मामला अब केवल दो राजनीतिक दलों के बीच तकरार तक सीमित नहीं रहा बल्कि राज्य के लोगों और सरकार के भीतर भी गंभीर मतभेद और अव्यवस्था उजागर कर रहा है। लेकिन जब हम धराली जैसी दुखद और चिंताजनक घटनाओं पर चर्चा कर ही रहे हैं, तो यह एक बार फिर याद दिलाना ज़रूरी है कि उत्तराखंड आज भी आपदा प्रबंधन नीति के बिना चल रहा है।
यह वही राज्य है जो हर साल भूस्खलन, बाढ़, जंगल की आग, सड़क दुर्घटनाओं और अत्यधिक जलवायु घटनाओं से जूझता है। यह वही प्रदेश है जिसने केदारनाथ 2013 से लेकर चमोली 2021 और अनगिनत मानवीय त्रासदियाँ देखी हैं। फिर भी हमारे पास आज तक एक स्पष्ट Disaster Management Policy क्यों नहीं है?
क्या ये शर्म की बात नहीं है कि एक पहाड़ी राज्य, जो सबसे अधिक आपदाओं का बोझ उठाता है, वह अभी भी “घटना-के-बाद प्रतिक्रिया” पर निर्भर है? क्या मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को इस पर तुरंत ध्यान नहीं देना चाहिए?
आज राजनीतिक बयानबाज़ी से ज़्यादा ज़रूरत व्यवस्था की जवाबदेही की है। धराली की त्रासदी हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि आपदा प्रबंधन पर गंभीर पहल के बिना, उत्तराखंड लगातार जोखिम में ही रहेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तराखंड में लगभग सभी सिस्टम धराशाई हो चुके है और आपदा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बेहद कम काम हुआ है। खैर अब तो जिम्मेदारी लेनी चाहिए और सरकार को एक मज़बूत आपदा प्रबंधन नीति तैयार करनी चाहिए। हम उत्तराखंड के लोग और समस्त देशवासी इससे कम के हकदार नहीं है।

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