उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यूसीसी को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं और कुछ आशंकाएं भी जाहिर की हैं। हरीश रावत ने लिखा है उत्तराखंड कॉमन सिविल कोड, एक बहुत बड़ा दस्तावेज जो हमारे जीवन से संबंधित कई कानूनों व कई व्यवस्थाओं को लम्बे समय तक प्रभावित करेगा, अभी तक इसका ड्राफ्ट सार्वजनिक नहीं हुआ है।
विपक्ष से उम्मीद की जा रही है कि उनको वो उसके पारण में विधानसभा में सहयोग करें अर्थात एक ऐसे ड्राफ्ट को पारित कर दें जिसको उन्होंने ठीक से पढ़ा भी नहीं और उसके विभिन्न प्राविधानों का क्या असर राज्य में रहने वाले लोगों के जीवन में पड़ेगा, विभिन्न वर्गों के जीवन में क्या असर पड़ेगा, उसका अध्ययन किए बिना, उसको समझे बिना, उस पर चिंतन किए बिना उसे पारित करें।
सरकार जल्दबाजी में है- हरीश रावत
सरकार बहुत जल्दी में है, उन्हें इस ड्राफ्ट में वोट नजर आ रहे हैं उन्हें राज्य के हित से वास्ता नहीं है, उनकी चिंता केवल चुनाव और वोट हैं। यह ड्राफ्ट आज के कई वर्तमान कानूनों को प्रभावित करेगा, कुछ नई व्यवस्थाएं खड़ी करेगा। क्या इस पहलू पर गहराई से व्यापक मंथन नहीं होना चाहिए? समाज पर उसका क्या असर पड़ेगा उसको समझे बिना राज्य के विपक्ष से उम्मीद की जा रही है कि वह भी उसको पारित करने में साथ दें, यदि विपक्ष ऐसा नहीं करेगा तो सरकार और भाजपा का पूरा प्रचार तंत्र उसको महिला विरोधी, हिंदू विरोधी, पता नहीं क्या-क्या विरोधी बताने में जुट जाएगा। जरा आप सोचिये कि एक ऐसी व्यवस्था इस ड्राफ्ट के पारण के बाद राज्य में लागू होगी जो लंबे समय तक हमारे आपके, सबके जीवन को प्रभावित करेगी, उसे बिना पर्याप्त अध्ययन किये और उसके प्रभावों का मूल्यांकन किए बिना, उसका विरोध या समर्थन कैसे किया जा सकता है !! इस सत्र में उसको विधानमंडल के पटल पर रखिए, बिल लाना है तो बिल लाइए उसको भी विधानमंडल के पटल पर रखिए या ज्यादा जल्दी हो तो उसको बजट सत्र में उसको पारित करवा लीजिए, क्योंकि वैसे भी यह कॉमन सिविल कोड नहीं रह गया है! आप राज्य की जनजातियों को इसके कार्य क्षेत्र से बाहर रखने जा रहे हैं। शायद सिख भाइयों को भी अब इसके कार्य क्षेत्र से बाहर रखेंगे, यह दोनों अच्छे निर्णय हैं। हम भी चाहते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी स्वरूप दिया जाए। इसका दुरुपयोग हो रहा है, महिलाओं को अधिकार देने के संबंधी कानूनों में हम भी सरकार के साथ निश्चित तौर पर खड़ा होना चाहेंगे। लेकिन जिस चीज का मकसद केवल समाज के एक वर्ग विशेष को लक्ष्य बनाकर कानून बनाना हो तो वह हमारी परंपराओं के खिलाफ है। उत्तराखंड उदार परंपराओं वाला राज्य है, हिमालय उदार है, गंगा, यमुना, शारदा उदार हैं, हमारी संस्कृति उदार है, हमारी सनातन धर्म की परंपराएं उदार हैं और यदि हम राज्य की केवल 8 प्रतिशत आबादी को लक्ष्य बनाकर उनके वैत्यिक कानून में हक्ष्तक्षेप करेंगे, उनके धर्म संबंधी मामलों में हक्ष्तक्षेप करेंगे तो क्या पूरे देश और दुनिया में यह संदेश नहीं जायेगा कि उत्तराखंड जहां 91 प्रतिशत आबादी हिंदू है, जिस राज्य के अंदर 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी सवर्ण है उस राज्य ने 8 प्रतिशत आबादी की भावनाओं को समझे बिना उनके ऊपर एक ऐसा कानून थोपा जा रहा है जो उनको आशंकित कर रहा है, उनको डरा रहा है। क्या यह उचित नहीं होगा कि एक बार इस ड्राफ्ट के प्रोविजन पर उनके प्रतिनिधियों से भी बातचीत कर ली जाय।
सौहार्द कायम रहना बहुत जरूरी- हरीश रावत
मैं इस राज्य का एक वरिष्ठ नागरिक हूं। मैं अपना कर्तव्य समझता हूं कि हमारे राज्य के अंदर सामाजिक सौहार्द बना रहे, सहिष्णुता बनी रहे, आपसी भाई-चारा बना रहे, हमारा कोई भी प्रयास यदि इसको कमजोर करता है तो इससे उत्तराखंड राज्य कमजोर होता है। वोट किसको ज्यादा मिलेंगे, किसको कम मिलेंगे, यह लोकतंत्र में होता रहेगा। कोई आवश्यक नहीं कि इस तरीके के कदम उठाकर उत्तराखंड में सत्तारूढ़ दल को लाभ ही हो जाए, नुकसान भी हो सकता है, लेकिन यह प्रश्न लाभ और नुकसान का नहीं है। राजनीतिक दलों को लाभ भी होगा, नुकसान भी होगा, होता रहा है और होता रहेगा। मगर राज्य के लोगों को नुकसान नहीं होना चाहिए, हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा को नुकसान नहीं होना चाहिए। हमारी जो पहचान है, सहिष्णु उदार समावेशी उत्तराखंड की उसको नुकसान नहीं होना चाहिए। आपकी जल्दबाजी और एक तरफ सोच निश्चय ही उपरोक्त नुकसान पहुंचायेगी।

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