उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने बीजेपी पर बड़ा हमला बोला है। माहरा ने कहा एक और भाजपा का नेता दुष्कर्म के मामले में गिरफ्तार हुआ है। इस बार भाजपा युवा मोर्चा का नेता है। भाजपा का युवा मोर्चा भी अपने सीनियर्स से बहुत कुछ सीख रहा है। पिछले दिनों भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश मंत्री हिमांशु चमोली के कारण हमारे प्रदेश के युवा जितेंद्र कुमार ने आत्महत्या कर ली थी।
भाजपा ने देशभर में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा गूंजाया था। लेकिन देवभूमि उत्तराखंड में हालात ऐसे हैं कि अब जनता खुद पूछ रही है कि आखिर बेटी को किससे बचाना है? क्योंकि एक-एक करके भाजपा नेताओं और पदाधिकारियों के नाम उन जघन्य अपराधों में सामने आ रहे हैं, जिनसे समाज का सिर शर्म से झुक जाता है।
अंकिता भंडारी की हत्या को कौन भूल सकता है? उस निर्दोष बेटी की हत्या में भाजपा के पूर्व राज्यमंत्री का बेटा शामिल था। वो मामला आज भी न्याय की राह देख रहा है, लेकिन सत्ता ने अपने लोगों को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये वही बेटी थी जो अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी, लेकिन उसे सत्ता के संरक्षण में पल रहे दरिंदों ने छीन लिया।
इसके बाद भी घटनाओं की श्रृंखला थमी नहीं। संतरेसा में एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या हुई और आरोपी कौन निकला? भाजपा के ओबीसी मोर्चा का पदाधिकारी। एक ऐसी पार्टी जो मंचों से “संस्कारी भारत” का सपना दिखाती है, उसी के भीतर ऐसे अपराधी बेखौफ बैठे हैं।
चंपावत में भाजपा का मंडल अध्यक्ष नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में ज़मानत पर बाहर है। सल्ट में भी यही कहानी। वहां भी भाजपा का मंडल अध्यक्ष एक किशोरी से दुष्कर्म के आरोप में जमानत पर है। इन सब मामलों में सरकार की चुप्पी किसी मौन स्वीकृति जैसी लगती है।
लालकुआं के दुग्ध संघ के चेयरमैन की करतूतें भी कम नहीं थीं। नौकरी का झांसा देकर महिला का शोषण करता रहा, और पार्टी ने तब तक आंखें मूंदे रखीं जब तक मामला सुर्खियों में नहीं आया। हरिद्वार में तो भाजपा की एक पदाधिकारी ने अपनी ही बच्ची के साथ हैवानियत की हदें पार कर दीं। अब सवाल यह है कि जब सत्ता के भीतर बैठे लोग ही अपराध के प्रतीक बन जाएं, तब आम बेटियों की सुरक्षा किससे होगी?
उत्तराखंड की जनता अब समझ चुकी है कि भाजपा का “बेटी बचाओ” नारा दरअसल “भाजपा नेताओं से बेटी बचाओ” की हकीकत में बदल चुका है। ये देवभूमि है, यहां की मिट्टी में आस्था है, लेकिन सत्ता के गलियारों में अब शर्म और जवाबदेही दोनों गायब हैं। सरकार का मौन ही उसकी सबसे बड़ी स्वीकारोक्ति बन चुका है।
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