मदरसों को लेकर किए अपने पोस्ट पर पूर्व सीएम हरीश रावत ने सफाई दी है। हरीश रावत ने कहा है
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मैं अभी तक पांच बार बांग्लादेश में हुए तख्ता पलट और उसके बाद भारतीय हितों को पहुंचने वाली संभावित चोट और हिंदुओं पर लगातार बढ़ते अत्याचारों, हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों में हो रही तोड़-फोड़ पर गंभीर चिंता व्यक्त कर चुका हूं और सरकार से आग्रह कर चुका हूं कि अमेरिका से शीर्ष स्तर पर बात की जाए कि वह बांग्लादेश के नए शासकों को इस स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए निर्देश दें। मैं “निर्देश” शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूं कि सारी दुनिया को मालूम है कि बांग्लादेश की वर्तमान सरकार अमेरिका की उत्पत्ति है। शेख हसीना जी की सरकार जो पूर्णतः भारत समर्थक थी। अमेरिका ने उसको अपने हितों के खिलाफ माना क्योंकि उन्होंने अमेरिका के हाथ में खेलने से इनकार कर दिया, उनको वहां सैनिक अड्डा बनाने के लिए भूमि देने से इनकार कर दिया था तो अमेरिका ने उनको दंडित किया। जबकि शेख हसीना जी और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान जी भारत के घनिष्ठ मित्र थे और शेख हसीना जी की सरकार के दौरान भारत का नॉर्थ ईस्ट का क्षेत्र सुरक्षित होता गया। क्योंकि जो आतंकवादी घटनाएं, जो उग्रवादी लोग पहले बांग्लादेश से संरक्षण पाते थे वह संरक्षण उनको मिलना समाप्त हो गया, हमारी पूर्वोत्तर की सीमा का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षित हो गया। शेख हसीना के समय में भारत के साथ बांग्लादेश का व्यापार भी बढ़ा। आज बांग्लादेश में घटित हो रही घटनाओं को कोई रोक सकता है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और उनसे कोई बात कर सकते हैं तो वह हमारे देश के प्रधानमंत्री जी हैं। बांग्लादेश में हिंदू सुरक्षित हों इस मामले में सारा देश जिसमें कांग्रेस पार्टी भी सम्मिलित है, हम प्रधानमंत्री जी के साथ हैं। दोस्तों इस विषय में मेरे उस ट्वीट को तो आप देखते हैं जो आपको पसंद नहीं होता है जिस पर आप टिप्पणी भी करते हैं। लेकिन उस ट्वीट को नहीं देखते हैं जो ट्वीट आपको अप्रिय होता है क्योंकि इस समय दिल्ली में जिसकी सरकार है यह दायित्व उनके ऊपर है कि बांग्लादेश में हिंदू भाई सुरक्षित रहें और कट्टरतावादी शक्तियां उनका उत्पीड़न न करे।
मदरसों का गठन मूलतः दीनी तालीम देने के लिए हुआ, उनको प्रेरित किया गया कि वह दीनी तालीम के साथ जो सामान्य शिक्षा है उसको भी देना प्रारंभ करें। यदि वहां केवल दीनी तालीम होगी, मजहबी शिक्षा दी जाएगी, धर्म विशेष की शिक्षा दी जाएगी तो वह एक ही दिशा में सोचेंगे और यदि उनको देश और दुनिया के विषय में ज्ञान दिया जाएगा। वह ज्ञान वाणिज्यिक, कला और दूसरे जो भी शिक्षा के विभिन्न स्ट्रीम हैं उनकी शिक्षा दी जाएगी तो उनका दृष्टिकोण व्यापक होगा और वह देश की मुख्य धारा के साथ जुड़ेंगे। जो कट्टरता केवल एक ही प्रकार की शिक्षा लेने से आती है वह कट्टरता उनमें नहीं आएगी, वह एक उदार हिंदुस्तानी बनेंगे जो हमारा संविधान अपेक्षा करता है। यदि आप मदरसों को आर्थिक सहायता देना बंद कर देंगे तो फिर मदरसे केवल मजहबी तालीम देंगे और ऐसी ताकतों से मदद लेंगे जो कट्टरवाद को प्रशय देती है और यदि राज्य सरकारें, केंद्र सरकार उनको मदद देती है तो उस मदद के अनुरूप वह मदरसों के ऊपर एक सीधा न सही लेकिन एक अप्रत्यक्ष नियंत्रण रख सकती हैं,इसीलिए व्यापक विमर्श के बाद देश हित में मदरसों को आर्थिक सहायता दी जाती है, लगभग डेढ़ करोड़ बच्चे जो मदरसों में पढ़ते हैं उनको आप चंदा देने वाले लोगों के रहमो कर्म पर नहीं छोड़ सकते, ऐसा चंदा देने वालों में कट्टरवादी लोग हो सकते है। हमारे समाज के किसी भी हिस्से में कट्टरवाद न आए इस दृष्टि से सोचना और उस सोच को आगे बढ़ाना हमारा नागरिक कर्तव्य है। हमारा संविधान हमको यही दिशा दिखाता है। हमारे देश की आजादी की मूल्य-मान्यताएं हमको यही सिखाती हैं। सनातन धर्म स्वयं उदारता की बात करता है। सबको अपनाता है, बहुलता की बात करता है। वसुधैव कुटुंबकम का क्या अर्थ है? तो हमारे संविधान ने वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को पूरी तरीके से अंगीकार किया है और हरीश रावत उसी के अनुरूप सोच रखता है और उसी सोच को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है और उसी में मेरे उत्तराखंड व हिंदुस्तान, दोनों का हित है। यूं मैं अपने भाजपा के सूरमाओं को विशेष तौर पर जो ट्रालर्स की ब्रिगेड मेरे लिए खड़ी की गई है, मैं उनसे इस बात को कहना चाहता हूं कि मेरे भुला लोगों, मैं तुम्हारी हकीकत जानता हूं। तुम में से 75 प्रतिशत तो वह लोग हैं जो लोग मेरी हर उस प्रगतिशील पोस्ट या ट्वीट के विरोध में खड़े होते हैं जो मैं इस सरकार के विरोध में करता हूं और जो मैं आमजन के हित में करता हूं उसको आप बिल्कुल अनदेखा करते हो। लेकिन आप कम से कम मेरे ट्वीट को पढ़ते हो, उस पर रिएक्ट करते हो उसके लिए मैं धन्यवाद देना चाहता हूं। लेकिन मैं अपने मार्ग से नहीं हटूंगा। चुनाव हारने से मैंने कभी अपने सिद्धांत और लक्ष्य नहीं बदले। उत्तराखंड में उदार व प्रगतिशील सोच आगे बढ़े इसी में सबका भला है। धार्मिक कट्टरता व विद्वेष समाज व देश को नष्ट करते है। पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना उन्होंने कट्टरता को अपनाया, परिणाम देश बटा और अभी और बट सकता है। बांग्लादेश आज कट्टरवादियों के हाथ में आ गया है तो इससे हम सबकी चिंताएं कई प्रतिशत बढ़ गई हैं। कट्टरवाद ने आज अरब जगत को युद्ध में झौंक दिया है। यूरोप, अमेरिका और दूसरे देश उदार दृष्टिकोण को अपना रहे हैं, वह तरक्की कर रहे हैं। क्रिश्चियन मुल्क इंग्लैंड में हिंदू पूजा पद्धति को मानने वाला प्रधानमंत्री बन गया है, गोरों के देश अमेरिका में दो बार अफ्रीका के अश्वेत व्यक्ति का बेटा राष्ट्रपति बन गया, अब भारतीय मुल्क की एक अश्वेत महिला गोरों के देश की राष्ट्रपति होने जा रही है और हम हिंदू-मुस्लमान में उलझे पड़े है।
आज पलायन एक बहुत दुर्घस समस्या के रूप में राज्य के सामने खड़ी है। बेरोजगारी निरंतर बढ़ रही है, अनाचार-दुराचार की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं, नशा खोरी की प्रवृत्ति ने सारे उत्तराखंड को जकड़ लिया है। आने वाला भविष्य इस समय बड़ी चिंताजनक स्थिति में है, क्या होगा ? भ्रष्टाचार प्रशासन तंत्र के हर स्तर पर बुरी तरीके से फैल चुका है, एक अराजक समाज की तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं। यदि यह सब ठीक है तो आप खूब हरीश रावत को कोसिए। यदि यह सब ठीक नहीं है तो मेरे ट्वीट या फेसबुक लेखों पर गंभीरता से विचार करिए और सर्व हिताए वाला रास्ता अपनाइए।
यूं मैं आपको बताते चलूं। मदरसों का इतिहास केवल कट्टरता/धार्मिक शिक्षा देने का नहीं है। देश की आजादी में भी मदरसों का बड़ा भारी योगदान है, इन मदरसों से जुड़े हुए ही लोगों ने मोहम्मद अली जिन्ना को ललकारा और कहा कि हिंदुस्तान हमारी मातृभूमि है, हम हिंदुस्तान में रहेंगे। जिन्ना और अंग्रेज भारत को ठीक दो टुकड़ों में बाटना चाहते थे। इन्हीं मदरसों से जुड़े हुए नेताओं और गांधीवादी मुस्लिम नेताओं का प्रयास था कि मोहम्मद अली जिन्ना की सोच केवल सिंध और पश्चिमी पंजाब तक सीमित रह गई और भारत का वर्तमान स्वरूप बच पाया। जिन लोगों ने उस समय भारत को चुना है उनकी भावनाओं का सम्मान तुष्टिकरण नहीं है बल्कि भारत के लिए पुष्टिकरण है, संकीर्णता छोड़ दो, उदार बनो, यही चचा हरीश रावत की सीख है।
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