पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर तीखा पलटवार किया है। हरीश रावत ने कहा कि सामान्यतः प्रधानमंत्री के संबोधन पर मैं टिप्पणी करने से बचता हूं। इस बार उत्तराखंड के स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखंड को शुभकामनाएं देते हुए माननीय प्रधानमंत्री जी ने एक लंबी विवरणिका के साथ कुछ गंभीर उपदेश और सलाहें भी दी हैं। उनके मन-मस्तिष्क में निश्चित तौर पर केदारनाथ धाम क्षेत्र में हो रहा है उपचुनाव रहा है। जिसमें माननीय प्रधानमंत्री जी ने एक बहुत ही सुनहरी बल्कि मैं यह कहूं कि हीरों से जगमगाती राज्य की प्रगति की तस्वीर हम लोगों के सम्मुख रखी है, अच्छा लगा। मुझे आश्चर्य हुआ कि प्रधानमंत्री जी ने राज्य की विकास दर, प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय और जीडीपी सहित इज इन डूइंग बिजनेस, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स आदि की प्रगति पर ब्यौरा देते हुए बार-बार वर्ष 2014 का जिक्र किया। यदि माननीय प्रधानमंत्री जी 2017 को बेस मानकर आंकड़ों को सामने रखते तो देश और उत्तराखंड वासियों को राज्य की और बेहतर तस्वीर और 2017 के बाद हुई तरक्की की तस्वीर देखने को मिलती। 2014 में सभी मोर्चों पर उत्तराखंड अत्यधिक गंभीर स्थिति पर था। भयंकर दैवीय आपदा से राज्य जूझ रहा था। प्रति व्यक्ति औसत आय से लेकर के विकास दर, जीडीपी, इज इन डूइंग बिजनेस, पर्यटकों का आगमन आदि सब बहुत निम्नतम स्तर पर था और निम्नतम स्तर से आज की स्तर की तुलना करना तो निश्चित तौर पर आंकड़े सुनहरे लगेंगे। प्रधानमंत्री जी ने रोजगार के भी कई सपनों का उल्लेख किया। उन्होंने वाइब्रेंट विलेज से लेकर के वोकल फार लोकल और होमस्टे आदि की जबरदस्त मार्केटिंग की, मुझे अच्छा लगा। मगर राज्य सरकार ने आंकड़े उपलब्ध करवाते वक्त यदि प्रधानमंत्री जी के सम्मुख राज्य के अंदर गांवों से हो रहे और विशेष तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों से हो रहे बड़े चिंताजनक पलायन के आंकड़े रखे होते तो शायद प्रधानमंत्री जी हमको बेहतर सलाह दे पाते और राज्य सरकार ने माननीय प्रधानमंत्री जी के सामने रोजगार के आंकड़े भी नहीं रखे, बेरोजगारी की वार्षिक वृद्धि दर इस समय उत्तराखंड में बहुत उच्च स्तर पर है। मगर प्रधानमंत्री जी के सम्मुख यह आंकड़े नहीं पहुंचे और प्रधानमंत्री के सम्मुख राज्य सरकार ने यह विवरण भी नहीं रखा जब प्रधानमंत्री जी पिछले कुछ वर्षों से राज्य के अंदर कौन-कौन सी बड़ी संस्थाएं खड़ी हुई हैं उसका ब्यौरा दे रहे थे तो यदि उनके सम्मुख यह तथ्य होते कि इस राज्य के अंदर, अकेले देहरादून के अंदर देश के प्रारंभिक काल में सात राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं खड़ी हुई हैं और इस राज्य के अंदर जितनी भी लब्ध प्रतिष्ठित संस्थाएं खड़ी हुई हैं वह सारी संस्थाएं भाजपा के शासनकाल से इतर हुई हैं। मैं कांग्रेस शब्द का उपयोग नहीं करना चाहूंगा। मैं प्रधानमंत्री जी की इस बाध्यता को समझता हूं। क्योंकि इस समय उनके संबोधन में केदारनाथ के चुनाव में खड़ी चुनौती की छाया है। श्री बद्रीनाथ जी की चुनावी हार के बाद श्री केदारनाथ जी का उपचुनाव निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री जी के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने बहुत सारी बातें कहते हुए हमारी मातृशक्ति को दुर्गा, मां नंदा का प्रतीक बताया। मैं, उनको बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा। मगर इधर दो वर्षों के अंदर वीभत्स सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाएं उत्तराखंड में हुई हैं, वह दिल्ली और कोलकाता में हुई निर्भया कांड के समकक्ष हैं। अंकिता भंडारी हत्याकांड से लेकर एक लंबा सिलसिला है बलात्कार और हत्याओं का जिसमें हमारी दलित वर्ग की बेटियां भी सम्मिलित हैं। मुझे मालूम है यदि प्रधानमंत्री जी के सामने यह तथ्य होते तो वह निश्चित तौर पर चिंता व्यक्त करते। राजनीति के अंदर कभी-कभी बहुत दुविधापूर्ण स्थिति होती है। यदि प्रधानमंत्री जी आंकड़े देते वक्त आधार वर्ष 2012 को मानते तो पहले 5 साल राज्य में उनकी सरकार थी वर्ष 2007 से 2012 तक, तो कई आंकड़े मुंह चिढ़ाने लगते हैं। यदि 2017 के बाद की तुलनात्मक स्थिति बताते तो बहुत सारे आंकड़े पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की सराहना करते हुए दिखाई देते। खैर प्रधानमंत्री जी का संबोधन में एक आशा वादिता उन्होंने व्यक्त की है और हमारी रजत जयंती और देश के अमृतकाल का उल्लेख करते हुए उन्होंने बहुत सारी अपेक्षाएं उत्तराखंड वासियों और यहां आने वाले पर्यटक बंधुओं से की है। मैं उम्मीद करता हूं कि उनकी राज्य सरकार, उत्तराखंड के लोग और देश के जो पर्यटक गण यहां आते हैं, वह तीनों मिलकर के उनकी 9 अपेक्षाओं को पूरा करेंगे!!
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