उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों पर अंतरिम रोक लगाए जाने के फैसले को लेफ्ट ने सही करार दिया है। कामरेड इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि चुनाव पल रोक लगाकर उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मनमानी और निरंकुशता पर लगाम लगाने का काम किया है। मैखुरी ने कहा त्रिस्तरीय पंचायतों का गठन 73 वें संविधान संशोधन के अनुसार होता है। उच्च न्यायालय के स्टे से यह भी स्पष्ट हुआ कि उत्तराखंड सरकार का सविंधान और वैधानिक प्रावधानों के प्रति भारी अवज्ञा का भाव है। उत्तराखंड सरकार इन चुनावों को कराने के प्रति किस तरह मनमानी और लापरवाही का रुख अपनाए हुए थी, वो इस बात से भी स्पष्ट होता है कि उच्च न्यायालय द्वारा दो दिन का समय दिये जाने के बावजूद 2025 की आरक्षण नियमावली का गजट नोटिफिकेशन तक सरकार का अदालत के सामने पेश नहीं कर सकी. उक्त गजट नोटिफिकेशन को लेकर पंचायत राज सचिव और महाधिवक्ता द्वारा दिये जा रहे बयान भ्रामक हैं और सरकार की लापरवाही व मनमानी की ही पुष्टि करते हैं। इंद्रेश मैखुरी ने कहा पंचायत चुनाव छह महीने पहले हो जाने चाहिए थे, लेकिन निर्धारित समय पर चुनाव नहीं करवाए गए और जिन चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो चुका था, उन्हें ही प्रशासक बना दिया गया. छह महीने के बाद भी सरकार ने कोशिश की कि अध्यादेश के जरिये छह महीने और पंचायतों को प्रशासकों के जरिये चलाया जाए. लेकिन अध्यादेश को राजभवन द्वारा लौटा दिया गया. फिर आनन-फानन में बिना किसी नियमावली के ही आरक्षण का रोस्टर घोषित किया गया और बिना गौर किये ही आपत्तियों को निरस्त कर दिया गया. मामला उच्च न्यायालय पहुंच चुका था और न्यायालय ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए दो दिन का समय दिया था. उच्च न्यायालय में जवाब देने के लिए नियत तिथि का इंतजार किये बिना ही उत्तराखंड सरकार द्वारा चुनाव की तिथियां घोषित करना मनमानी का एक और नमूना था। ये पूरा घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि उत्तराखंड सरकार पंचायत चुनाव करवाने के प्रति कभी भी गंभीर नहीं थी और उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया स्थगनादेश (स्टे) उसकी प्रशासनिक क्षमता व कार्यकुशलता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह है।
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