16 September 2024

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7 साल बाद हरदा ने दिया 3 साल का ‘हिसाब’!

7 साल बाद हरदा ने दिया 3 साल का ‘हिसाब’!

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने अनुभव एक बार फिर साझा किए हैं। साथ ही बताया है कि कैसे तीन साल के कार्यकाल में  उनके सामने चुनौतियां और उलझनें थी। इसके अलावा हरीश रावत ने गैरसैंण स्थाई राजधानी और नये जिले ना बना पाने पर भी सफाई दी है। हरीश रावत ने बताया है कि उनके मन में तब क्या चल रहा था और अब क्या चल रहा है।

 हरीश रावत की सोशल मीडिया पोस्ट

आप राजनीति में कभी महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं तो यह स्वाभाविक है कि आपसे सवाल पूछे जाते हैं? मैं भी इत्तेफाक से 3 साल उत्तराखंड का मुख्यमंत्री रहा। राहुल जी की कृपा थी और भगवान केदारनाथ का बुलावा था कि अत्यधिक कठिन, विषम समय में मुझे मुख्यमंत्री उत्तराखंड बनने का सौभाग्य मिला। डेढ़-पौने दो साल में राज्य को प्राकृतिक आपदा से उभारा, केंद्र सरकार की कृपा से आपदा से उभारने में तो कोई मदद मिली नहीं, मगर राजनीतिक मदद जरूर मिल गई, राज्य पर राजनीतिक अस्थिरता थोप दी गई। डेढ़-पौने दो साल प्राकृतिक आपदा से लड़ते रहा और एक सवा साल राजनीतिक अस्थिरता से लड़ता रहा लेकिन बहरहाल 3 साल से कुछ अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहा तो मुझसे भी कुछ सवाल पूछे जा रहे हैं? स्वाभाविक है, जब मैं दूसरों से कुछ सवाल पूछता हूं और ट्वीट करता हूं, चर्चाएं उठता हूं तो फिर कुछ लोग मुझसे भी सवाल पूछेंगे और पूछते हैं। मैं उन लोगों का बड़ा आभारी हूं कि वह मुझे अभी इस लाइक समझते हैं कि मैं उनकी राजनीतिक छेड़ा-छाड़ी का समुचित उत्तर दूं।

गैरसैंण स्थाई राजधानी का मुद्दा

बहुत समय से गैरसैंण उत्तराखंड के राजनीतिक विमर्श से बाहर जैसा हो गया है। इसी दौरान राज्य सरकार को याद आई कि भई गैरसैंण भी है और लगभग पौने दो साल बाद गैरसैंण में ३ दिन का विधानसभा सत्र आयोजित करने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। इस दौरान केदारनाथ क्षेत्र में राजनीतिक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचा तो मार्ग में मैंने जगह-जगह बोर्ड लगे हुए देखे कि राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण। मैंने फौरन गैरसैंण के अपने सूत्रों को टेलीफोन लगाया और मैंने कहा कि यहां कभी चीफ सेक्रेटरी, एडिशनल चीफ सेक्रेटरी कोई बैठ रहा है? कमिश्नर बैठे हैं? उन्होंने कहा कमिश्नर तो छोड़िए कभी जिलाधिकारी नहीं आए। मैंने कहा कुछ तो राजधानी का चिन्ह दिखाई दे रहा होगा? उन्होंने कहा साहब राजधानी के नाम से कोई चपरासी तक नहीं है, केवल तहसील और एसडीएम कार्यालय के नाम से कुछ है, बाकी तो कुछ है नहीं। मैंने कहा यह तो पहले भी था, बोले इसके अलावा तो और कुछ नहीं है, मैंने कहा देखो तो बोले यहां भी ग्रीष्मकालीन राजधानी लिखा हुआ है। मेरे मन में यह आया कि क्या उत्तराखंड का राजनीतिक विमर्श इतना सत्ता भ्रमित हो गया है कि कोई उनसे सवाल पूछ भी नहीं रहा है कि बोर्ड लगा दिये इतने बड़े-बड़े, लेकिन ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में है कहां? कुछ तो चिन्ह उसका दिखाई देना चाहिए, कुछ छोटा सा ही सही स्वरूप दिखाई देना चाहिए, वहां तो जो कुछ है या बना वह 2017 तक का है, उसके बाद कुछ कहने लायक है तो केवल विधानसभा में एक घोषणा है ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की। कांग्रेस पूरी राजधानी की बात कर रही थी, कुछ आलोचना के स्वर भी थे और मैंने आगे बढ़कर के कहा कि एक कदम तो यह आगे बढ़े। मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए श्री त्रिवेंद्र सिंह जी को लगभग साढ़े तीन साल हो गए हैं, उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी का सफर इन साढ़े तीन वर्षों में केवल कुछ सड़क पर लगे हुए बोर्डों तक सीमित है। मेरी हालत यह है कि रोज शाम तक सोचता हूं कि यार जो हो रहा है होने दो, कल से अब कोई सवाल-जवाब नहीं करूंगा। लेकिन जब सुबह आती है तो बहुत सारी ऐसी चीजें जो राज्य या राज्य के बाहर घटित हो जाती है, मैं फिर से अपनी शाम की सोच को भुलाकर अपने नए सवालों से उलझ जाता हूं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, मैंने गैरसैंण के प्रसंग पर यह मान लिया था कि मेरे कर्तव्य की इतिश्री हो चुकी है और आगे बहुत सारे लोग हैं जिनमें संघर्ष की सोच और सामर्थ्य दोनों हैं, वह लोग गैरसैंण को लेकर इस मामले को आगे बढ़ाएंगे। मगर सड़कों पर लगे हुए बोर्ड और गैरसैंण की वास्तविक स्थिति की जानकारी लेने के बाद मेरा मन नहीं मान रहा है। इसलिए मैंने एक ट्वीट कर यह निश्चय किया है कि मैं 21अगस्त को #गैरसैंण में महावीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की मूर्ति के सम्मुख धरना कम #उपवास करूंगा और उसके बाद गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी खोजूंगा। स्वाभाविक है मेरे कुछ साथियों ने मुझसे अपना पुराना सवाल दोहराया है कि जब मैं मुख्यमंत्री था तो मैंने उस समय गैरसैंण में राजधानी क्यों नहीं बना दी? सवाल भी कुछ तर्कसंगत है, मगर मैं कैसे उन हालात का वर्णन करूं? जिन हालात में मैं मुख्यमंत्री बना था और आपदाग्रस्त राज्य की स्थिति क्या थी? उस स्थिति को सुधार कर पुनर्वास और पुनर्निर्माण के कामों को लक्ष्यगत सीमा तक पहुंचाने के अलावा तो मुझे उस समय कुछ सूझ ही नहीं रहा था और जब उत्तराखण्डियत से जुड़े बिंदुओं जिनमें गैरसैंण भी है पर सोचने और काम करने का समय आया तो उस समय मुझे सरकार बचाने के कर्तव्य में अपनी संपूर्ण शक्ति लगानी पड़ी और सरकार बचाने के बाद 4 महीने, वर्ष 2016 का बजट खोजने में लग गए। केंद्र सरकार और माननीय राज्यपाल महोदय की कृपा से विधानसभा द्वारा पारित बजट को आवश्यक अनुमोदन नहीं मिल पाया। राज्य के वित्त विधेयक व राज्य के बजट को खोजने के लिए मुझे देहरादून से दिल्ली तक कई बार चक्कर लगाने पड़े और अनंतोगत्वा फिर से विधानसभा का सत्र बुलाकर वित्त विधेयक का पारण करवाना पड़ा। इस सारी प्रक्रिया के पूरे होते-होते तक विधानसभा चुनाव की घंटी बजनी शुरू हो गई। राजधानी जैसे अति महत्वपूर्ण प्रश्न पर अपनी पार्टी में, अपने मंत्रिमंडल में और उसके बाद राजनीतिक सहमति बनाने लायक समय बचा ही नहीं था। हां, मैंने एक बीच का रास्ता निकाला था कि हम अभी ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दें और फिर 2020 में राजधानी को गैरसैंण में शिफ्ट करें और तब तक ढांचागत विकास के कामों को पूरा कर दें, जिनमें 500 कर्मचारियों के आवासीय भवन बनाने से लेकर के सचिवालय बनाने आदि महत्वपूर्ण और अति आवश्यक कार्यों के करने का लक्ष्य हमने रखा, सचिवालय एवं आवासीय भवन बनाने का टेंडर भी कर दिया, टेंडर मंजूर भी कर दिया, काम करने वाली एजेंसी भारत सरकार की वैब कोष को भी छांट लिया, उनको काम भी दे दिया और पैसा भी उसके लिए निर्धारित कर दिया लेकिन तब तक इतना विलंब हो चुका था कि राज्य में आचार संहिता लग गई। आचार संहिता लगने की संभावना का आभास होते ही मैंने कुछ लोगों को विश्वास में लिया और उनकी सहमति लेकर गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सम्मुख लाने का निर्णय किया। विधानसभा के उपाध्यक्ष और कर्णप्रयाग के विधायक जिनके क्षेत्रांतर्गत गैरसैंण आता था, वह मेरे पास रोते-रोते आए कि आप क्या कर रहे हैं? आप नहीं चाहते कि मैं दूसरी बार विधायक चुनकर आऊं, यदि आप केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी बना रहे हैं तो आप इसको मत बनाइए। मैंने उनसे कहा कि मुझे विश्वास है हम पुनः चुन कर आ रहे हैं, हमारी फिर से सरकार बन रही है और मैं 2020 तक सार ढांचा तैयार करके यहां राजधानी ले आऊंगा। राजधानी घोषित करने का अर्थ है कि राजकार्य राजधानी से ही प्रारंभ होने चाहिए और यहां अभी ढांचागत स्थिति ऐसी नहीं है कि ऐसा हम कर सकें। इससे राज्य के अंदर एक अनिश्चितता, अफरा-तफरी का वातावरण पैदा हो जाएगा, लेकिन हम इस समय राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कार्य कर लेते हैं और गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर देते हैं, मैंने उनको किसी तरह समझा कर वापस भेजा। दूसरे दिन सुबह बल्कि उस समय मैं उठा भी नहीं था, 6 बजे वह मेरे पास आ गए। मेरे कक्ष सहयोगी ने मुझे जगा कर कहा कि मैखुरी जी आए हैं, मैं अचकचा कर के उठा और मैंने कहा कि मैखुरी जी आये हैं? तो मैं जैसे तैसे मुंह धोकर उनके पास पहुंचा और उनके लिए भी चाय मंगाई, अपने लिए भी चाय मंगाई मैखुरी जी ने एकदम मेरे पांव पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाए, मैंने कहा आप मुझे क्यों नरक में डाल रहे हैं, आप ब्राह्मण देवता हैं! मैंने कहा क्या हो गया आप मुझे बताइए, बोले मैं मर जाऊंगा और मेरे सारे राजनीतिक सहयोगी कह रहे हैं कि ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित हुई तो सारे क्षेत्र में आपके खिलाफ विरोध हो जाएगा, या तो राजधानी बनाईए, ग्रीष्मकालीन राजधानी का तो विरोध होगा। बोले सबसे अच्छा है कि आप इस सवाल को छेड़िए ही मत। हां आप जिला बना दीजिए।

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नये जिलों पर कहां अटकी बात?

हमने 9 जिले प्रस्तावित किए थे। नए जिले बनाने से पहले दर्जनों तहसील और उप तहसीलें गठित की गई। मुझे श्री मैखुरी जी का सुझाव अच्छा लगा मैंने सोचा कि इसको राजधानी की ओर एक कदम समझकर कोटद्वार, काशीपुर, रुड़की, नरेंद्रनगर, पुरोला, डीडीहाट, रानीखेत, गैरसैंण, बीरोंखाल को नए जिले के रूप में गठित कर देते हैं। जैसे ही यह बात चर्चा में आई कि हम 9 जिले बनाने का प्रस्ताव लेकर मंत्रिमंडल में आ रहे हैं, हमारे एक विधायक महोदय ने स्पीकर महोदय से मिलकर के कहा कि मुझे इस्तीफा देना पड़ेगा। उनको डर था कि उनके क्षेत्र में तीन ब्लाॅकों को मिलकर नया जिला बनाने की जो मांग है वह भड़क जाएगी और उनका राजनीतिक नुकसान होगा। तीन विधायक अलग-अलग मेरे पास आए की ये नए जिले बनने से हमारे शहर के वकीलों और व्यापारियों में बड़ी नाराजगी है, उनका कहना है कि यह नये जिले बन जाएंगे तो उनके क्लाइंट बट जाएंगे और व्यवसाय पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। बल्कि एक विधायक को मैंने आश्वस्त भी किया कि हम दो नई कमिश्नरी भी बनाएंगे। जिनमें से एक उनके शहर में होगी। विधायकों में खलबली देखकर मैं सरकार के स्थायित्व को लेकर आशंकित हो गया हम अपने किसी भी सहयोगी की नाराजगी लेने की स्थिति में नहीं थे मुझे नए जिले बनाने का पुण्य कार्य भी 2017-2018 के लिए छोड़ना पड़ा। चुनावी समय वह राजनीतिक स्थिति की नाजुकता को देखते हुए ऐसा करना आवश्यक हो गया था, अब जब भी मै नए जिलों की बात करता हूं तो भाजपा से जुड़े कुछ दोस्त मुझसे सवाल करते हैं कि आपने क्यों नहीं किया, स्वाभाविक है। अब मैं उनको कैसे समझाऊं कि आधे से ज्यादा महत्वपूर्ण काम तहसील आदि बनाने के थे,सब हमारी सरकार ने पूरा किया। लेकिन समय की नाजुकता को देखते हुए मैं नए जिले बनाने का निर्णय नहीं ले सका और 2017 से जनता जनार्दन ने ही मुझे अवसर नहीं दिया। जिला बनाने का कार्य भी भाजपा को सौंप दिया। क्योंकि मैं नए जिलों के औचित्य के प्रति आश्वस्त हूं और इसलिए मैं आज की सरकारों को याद दिला रहा हूं कि भई यह जिले बनने हैं। राजधानी के साथ दूसरा प्रश्न बहुधा मेरे मित्र पूछते हैं वह जिलों को लेकर के है? उनका और उनकी समझ का मैं बहुत आभारी हूं कि उनकी मुझसे अपेक्षा थी, मैं ऐसा कर दूं और वह यह समझते थे कि मैं ऐसा कर सकता हूं और मुझे करना चाहिए था। जब वह प्रश्न पूछते हैं तो मैं अपने आपसे भी कई सवाल पूछने लगता हूं! लेकिन हर तरीके से एक ही उत्तर आता है कि तुम ऐसी स्थिति में नहीं थे, राजनीतिक रूप से भी नहीं थे और समय के रूप से भी इस स्थिति में नहीं थे कि राजधानी गैरसैंण कर सकते थे या नए जिले बना सकते थे!! हवा के बदलाव को हम नहीं भांप पाये। मुझे हवा के बदलाव का एहसास नहीं था कि भाजपा आ रही है, हमको तो अपने कार्यों पर भरोसा था। मैं जिस दिशा की तरफ उत्तराखंड को लेकर के जा रहा था, मुझे उस दिशा में भरोसा था कि हम पुनः लौट करके आएंगे। मगर जनता जो हिन्दू-मुस्लिम बयार उत्तर प्रदेश से बह रही थी उसमें मतदान कर गई और कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पाई।

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यह सत्य है कि गैरसैंण राज्य की राजधानी हो और छोटे राज्य में छोटे जनपद इकाइयां बने इस तर्क से पूर्णतः सहमत होते हुए मैं इस कार्य को पूर्ण नहीं कर पाया। यह भी सत्यता है कि चुनाव के प्रारंभ होने तक लोग कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर दे रहे थे। यदि मैं राजनीतिक नहीं व्यवहारिकता और तार्किकता को आधार मानकर बिना गैरसैंण क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का निर्माण किये राजधानी घोषित नहीं करना चाहता था, उसका एक प्रबल आधार मेरा विश्वास भी था कि हम 2017 में लौट के आएंगे और मैं अपने आपको लगभग साढ़े तीन-चार साल दे रहा था, जिसमें हम गैरसैंण-भराड़ीसैंड़़ क्षेत्र में सचिवालय, आवासीय भवन आदि से लेकर उन सब सुविधाओं का विस्तार करते जो सुविधा कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए यहां तक की माननीय विधायकगणों और जनता के लिए लिए जुटाना आवश्यक था। इसी दृष्टिकोण को लेकर हमने भराड़ीसैंण टाउनशिप का प्लान भी आगे किया, जमीन नोटिफाई कर दी और जब हमारे टाउनशिप के प्लान में सरकारी पूंजी के साथ प्राइवेट पूंजी को भी आमंत्रित किया जा रहा था। हम कहीं पर भी गैरसैंण में राज्य की नई राजधानी बने इस लक्ष्य को हल्के से नहीं ले रहे थे, हमने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर गैरसैंण अवस्थापना निर्माण निगम और उत्तराखंड रोपवे, टनल, फ्लाई ओवर आदि के लिए निगम का गठन किया। क्योंकि मैदावन से नयार के किनारे-किनारे जो सड़क आनी थी उस सड़क को आदिबद्री तक लाने के लिए टनल बनाने की आवश्यकता थी, इसी प्रकार से हम लोग चौखुटिया से भी एक टनल का निर्माण करना चाहते थे जिससे मेहलचौड़ी तक सड़क की दूरी को थोड़ा कम किया जा सके। उसी प्रकार से एक टनल का निर्माण गरूड़-द्योनाई से खंसर तक बनाना चाहता था। गैरसैंण में राजधानी के साथ और हमने गैरसैंण में राजधानी बनाने का निर्णय केवल राजनीतिक कारणों से नहीं लिया था, मैंने उसके पीछे राज्य के लिए आर्थिक तर्कों पर भी मंथन किया। हमारे तराई भाभर के जितने मैदानी क्षेत्र हैं वह लगभग सैचुरेट हो चुके हैं, शहर भी सैचुरेट हो गए हैं यहां स्थित शहर आबादी के बोझ से अव्यवस्थित हो रहे हैं। अब इन क्षेत्रों में जितने भी ग्रोथ सेंटर बनने थे वह बन चुके हैं। नए ग्रोथ सेंटर्स के लिए अब गुंजाइश लगभग समाप्त हो गई है। लोगों की आय बढ़ाने के साथ उनको पूंजी निवेश के लिए नए क्षेत्रों की तलाश रहेगी। यदि हम उसकी नव अर्जित पूंजी निवेश के लिए रास्ता नहीं ढूंढेंगे तो वह उस पूंजी का कहीं न कहीं और राज्य के बाहर उपयोग करेगा, उस पूंजी का उपयोग हमारे ही राज्य के अंदर हो सके उसके लिए नये क्षेत्रों को खोजना व विकसित करना आवश्यक है और वह क्षेत्र हमारी नदियों के किनारे-किनारे वाले क्षेत्र हो सकते हैं। मैंने यह तथ्य बहुत पहले से अपने मन में बिठा लिया था, इस तथ्य को मध्य नजर रखकर के ही मैंने टनकपुर से काली नदी के किनारे-किनारे जौलजीवी तक सड़क स्वीकृत करवाई थी और इसी दृष्टिकोण को मध्य नजर रखकर हमने मरचूला से भिकियासैंण के लिए भी रामगंगा के किनारे-किनारे सड़क स्वीकृत करवाई है ताकि नदी के किनारे-किनारे चौखुटिया तक हमको एक नया क्षेत्र मिल सके जिसमें लोग इन्वेस्टमेंट कर सकें और मुझे यह कहते हुए खुशी है कि मरचूला वाली सड़क अभी अच्छी तरीके से बनी भी नहीं है। तीन-चार किलोमीटर अर्धनिर्मित क्षेत्र में भी अभी से बाहरी पूंजी निवेशित होती दिखाई दे रही है, वहां रिजॉर्ट और व्यापारिक केंद्र बनने शुरू हो गए हैं। हमने यह सोचकर कि हमें कुछ नये क्षेत्र मिलेंगे, हमारी धारें व गाड़े, दोनों विकास से अछूते क्षेत्र हैं। एक व्यवस्थित योजना के तहत उन क्षेत्रों को नए ग्रोथ एरियाज के रूप में विकसित किया जा सकता है। इन संभावनाओं को गैरसैंण के साथ जोड़ने के लिए हमारी सरकार ने 8 मार्ग प्रस्तावित किए थे इसलिए इसी उद्देश्य के साथ हमने गैरसैंण अवस्थापना एवं सड़क निर्माण निगम का गठन भी किया था। मैं मुख्यमंत्री के रूप में रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चंपावत के तुलनात्मक रूप से दूसरे दिनों की अपेक्षा तेज विकास से बहुत प्रभावित हूं। अल्मोड़ा, पौड़ी, टिहरी जैसे जनपद, छोटे जनपदों की विकास की दौड़ में लड़खड़ा रहे हैं। छोटे जिलों में प्रशासन लोगों के बहुत नजदीक तक है, डिलीवरी सिस्टम फास्ट है, वरिष्ठ अधिकारियों से मॉनिटरिंग संभव है, निर्धारित बजट का क्रियान्वयन समय पर संभव हो पा रहा है, इसलिए जब राज्य छोटा बना दिया तो जिले भी छोटे होने चाहिए और जिले बनाने के बाद तहसील बनाना, फिर पेशकारियां और उप तहसीलें बनाना कठिन कार्य होता है। हमने पहले तहसीलें, उप तहसीलें पेशकारियां आदि निर्धारित की ताकि जो नए जिले बनाएं उनमें स्पष्ट तौर पर कौन सी पेशकारी का एरिया रहेगा या तहसील रहेगी वह साफ रहे, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगभग राज्य की कुल तहसीलों का एक तिहाई से अधिक तहसीलें हमारी सरकार के कार्यकाल में बनी और उसी समय हमने जिलों के लिए भी मंथन प्रारंभ किया। जब हम 2015 में उपलब्ध जानकारियां और डाटा के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि नये जिलों के निर्माण से राज्य की ग्रोथ रेट को दो प्रतिशत बढ़ा सकते हैं। हमने 2015-16 के बजट में 100 करोड़ रूपया नये जिलों के निर्माण के लिए प्राविधान किया था। जब विधानसभा द्वारा पारित हमारा बजट राजनीतिक कारणों से माननीय गवर्नर महोदय और केंद्र सरकार द्वारा उलझाया न गया होता, तीन-चार माह का विलंब नहीं होता तो शायद जिलों के विषय में जो आज ताना मुझको सुनना पड़ा है वह ताना नहीं सुनना पड़ता, यदि यह जिले अस्तित्व में आ गए होते। यह उनका दायित्व है हमारे छोड़े हुए अधूरे कार्यों या जिन कार्यों को हम नहीं कर पाए, राज्य के हित में उनको आज की सरकार आगे बढ़ाए। सरकारे बदलती रहती हैं, मगर विकास निरंतर आगे बढ़ता रहना चाहिए।