हरीश रावत ने स्टिंग ऑपरेशन मामले में हो रही सुनवाई के बहाने केंद्र सरकार और बीजेपी पर निशाना साधा है। हरीश रावत ने बुधवार देर शाम सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए कई सवाल उठाए। हरीश रावत ने लिखा आज 5 जुलाई है, कल 4 जुलाई को #CBI कोर्ट देहरादून से 15 जुलाई की तारीख मिली है, हम उसकी तैयारी भी नहीं कर पाए थे कि अभी सूचना मिली है कि कल अर्थात 6 जुलाई को नैनीताल #हाईकोर्ट में सी.बी.आई. के अनुरोध पर पुराने स्टिंग प्रकरण की सुनवाई होगी, न्यायालय का आदेश सर माथे पर। एक तथ्य निश्चित रूप में स्थापित हो चुका है कि केंद्रीय सत्ता जिनको “लाल सूची” में दर्ज कर ले रही है, उनको पूरी तरीके से बर्बाद किए बिना रुक नहीं रही है, नहीं तो इतनी लंबी चुप्पी के बाद दोनों जगह एक साथ वादों की सुनवाई प्रारम्भ होना कुछ विषमय पैदा करता है! केंद्रीय सत्ता को 2016 में “राष्ट्रपति शासन” प्रकरण में एक जबरदस्त राजनीतिक और न्यायिक पराजय झेलनी पड़ी, उसे वो अभी तक भी भूल नहीं पाए हैं! कितनी महानता का दावा करें मगर ऐसे कई प्रकरण हैं जो केंद्रीय सत्ता के वास्तविक चरित्र और व्यक्तित्व को उजागर करती हैं। उस समय इन निर्णयों से जुड़े हुए न्यायिक पक्ष के महापुरुषों को क्या कुछ झेलना पड़ा वो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक प्रकरण के रूप में दर्ज है, जो हमेशा चर्चा में रहेगा। मैंने भी कम नहीं झेला है, मुझे अत्यधिक तनावपूर्ण परिस्थितियों में अपने दायित्व के साथ-साथ न्यायिक झंझावात को झेलना पड़ा है, उस स्थिति को याद कर आज भी मेरी रीड़ की हड्डी में एक सिरण सी पैदा होती है। आज की न्यायिक व्यवस्था अपने उच्चतम आदर्शों के बावजूद भी अत्यधिक खर्चीली है, मुझ जैसे निम्न मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए न्यायिक आवश्यकता की वित्तीय प्रबंधन करना कितना कठिन होगा, यह सोचकर मन व्याकुल हो जा रहा है। सत्ता मुझसे किस बात को लेकर इतनी खफा है! दो कारण हैं, पहला है मैं अपनी पार्टी और पार्टी के नेतृत्व के प्रति निष्ठावान हूं, प्राण देकर भी नेतृत्व के साथ रहूंगा । दूसरा विपक्ष के सदस्य के रूप में, जनहित में पूरी जनता के सवालों पर खुलकर बोलना चाहिए और मैं बोलता हूं जो शायद सत्ता को अत्यधिक नागवार गुजर रहा है। लोकतंत्र में यदि बोलने और पार्टी के प्रति निष्ठा की सजा भुगतनी है तो मैं इसको भुगतने के लिए मानसिक रूप से पूर्ण तरीके से तैयार हूं। मगर ईश्वर की भी अदालत है और जनता की भी अदालत है। मैं अभी तक नहीं समझ पाया कि मुख्यमंत्री के रूप में मैंने उत्तराखंड के साथ या लोकतंत्र के साथ कौन सा अपराध किया है, जिसके लिए निरंतर मुझे सजा दी जा रही है। टूटी हुई गर्दन के साथ भी अपने कर्तव्य के अनुपालन के लिए मेरे हाथ और मेरा शरीर कभी नहीं कांपा। मैंने इस राज्य के गरीब व आम लोगों के लिए बिना किसी भेदभाव के अपने पद में निहित शक्तियों का पूर्ण उपयोग किया। रात के दो-तीन बजे भी मैंने आवाजें लगाकर के भी पूछा कि ऐसा कोई रह तो नहीं गया है जो मेरे पास कोई प्रार्थना लेकर के आया हो! मेरे गर्दन टूटने की जो प्रारंभिक अवस्था के चार-पांच माह थे मैं, भगवान से प्रति दिन प्रार्थना करता था कि यदि मुझे अपाहिज ही होना है तो मैं आपके नाम का स्मरण करते-करते यू हीं मर जाऊं, लेकिन एक अपाहिज मुख्यमंत्री के रूप से एक दिन भी इस राज्य के ऊपर मुझे बोझ मत बनाना और मैंने अपने इलाज का भी न्यूनतम बोझ राज्य पर आने नहीं दिया। भगवान ने मेरी प्रार्थना सुनी और मैंने अपनी सारी कठिनाइयों को एक तरफ रखते हुए अपने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ निभाया और एक अत्यधिक विकट स्थिति से राज्य को उभारकर विकास के रास्ते पर लाकर खड़ा किया, भविष्य के उत्तराखंड की हजारों-हजार ठोस शुरूवातें की। आम, गरीब और पीड़ित वर्ग में किसी को नहीं छोड़ा जिसकी मदद में उस समय की सरकार खड़ी न हुई हो। मैंने कभी अपने प्रतिद्वंदी या विपक्ष के प्रति विद्वेष नहीं रखा। मेरे सामने ऐसे तथ्यपूर्ण फाईलें आयी जिनमें मैं, विपक्ष के नेताओं को बदनाम करने के लिए केस दर्ज करने के लिए आज्ञा दे सकता था, लेकिन मैंने विवेचना के बाद यह पाया कि राज्य को जान-बूझकर नुकसान पहुंचाने की चेष्टा इन लोगों ने नहीं की है और मैंने तदनुरूप निर्णय लिया जिस पर मुझे आज भी गर्व है। आज विद्वेषपूर्ण भावना से मुझे चुप कराने की कोशिश हो रही है। मगर तथ्य यह है कि मैं, अपनी पार्टी के नेतृत्व से कह चुका हूं कि अब मैं किसी पद का आकांक्षी नहीं हूं। लेकिन कांग्रेस शक्तिशाली हो, राज्य शक्तिशाली हो, जनता के सवालों पर कांग्रेस संघर्ष करे, मैं उस कर्तव्य के पालन से विमुख नहीं हो सकता। चाहे उस कर्तव्य के पालन करते हुए मुझे अपनी शेष ज़िन्दगी न्यायालय की चौखट पर गुजारनी पड़े और कुछ भी प्रताड़ना झेलनी पड़े, उसे झेलूंगा और इस हेतु मैं मानसिक रूप से तैयार हूं। हां मैं, उत्तराखंड के लोगों से इतना ज़रूर प्रार्थना करता हूं कि मैंने 55 साल के राजनीतिक जीवन में यदि आपके साथ निष्ठा से जुड़ाव रखा है, आपके सवालों को आपके दुखदर्द को उठाया है, उसको समझा है, उसके निदान के लिए सेवाभाव से प्रयास किया है और आज भी आपकी आवाज़ और भावना बनने का निरंतर प्रयास करता हूं तो, सत्ता के इस अहंकार पूर्ण कृतियों का आप आवश्यक संज्ञान लें। आप इसमें ज़रूर मनन-चिंतन करें, क्या ये बदले की भावना से जो काम उत्तराखंड में अपने राजनीतिक विरोधी के साथ किया जा रहा है क्या वो राज्य के हित में है ? यदि मैंने कोई भी काम ऐसा किया है जिससे आपके हितों को चोट पहुंची है, उत्तराखंड के हितों को चोट पहुंची है, तो मेरे साथ कोई रियायत की आवश्यकता नहीं है। मगर यदि केवल राजनीतिक बदले की भावना से सत्ता अपने अहंकार के बल पर मेरा मानमर्दन करना चाहती है तो मुझे कुछ नहीं, बस आपसे मौन आशीर्वाद की आकांक्षा है।
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