देहरादून में बढ़ते जाम और बढ़ती जनसंख्या की वजह से हो रही अव्यवस्था पर हरीश रावत ने चिंता जताई है। साथ ही वक्त रहते इसका समाधान निकालने की भी वकालत की है। हरीश रावत ने ये भी कहा है कि कैसे जब वो सरकार में थे तो बना बनाया प्लान लागू नहीं कर पाए। हरीश रावत के मन में आज भी अपने उस फैसले पर मलाल है। हरीश रावत ने लिखा है, आज सुबह थोड़ा एकांत समय मिला। समाचार पढ़ा कि गौलापार में हाईकोर्ट का परिसर बन रहा है, अच्छा लगा। मगर चिंता भी हुई कि हल्द्वानी और घुट जाएगा। हल्द्वानी पूरी कुमाऊं की अर्थव्यवस्था का हृदय स्थल है। क्या हाईकोर्ट परिसर के निर्माण के साथ हल्द्वानी की ट्रैफिक समस्या के समाधान के प्रश्न पर भी विचार किया गया, यह सोचते-सोचते जो कुछ देहरादून, ऋषिकेश के ट्रैफिक जाम की स्थिति पर मन विचलन करने लगा। निश्चय ही आने वाली चारधाम यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों की कठिनाइयां और बढ़ेंगी, चारधाम यात्रा से अवश्य ही हमारी अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है। मगर ऋषिकेश, देहरादून और मसूरी में लगने वाला ट्रैफिक जाम का कोहराम बहुत कठिनाई पैदा करता है। वर्ष 2014-15-16 में हमने योजनागत तरीके से देहरादून और उसके आस-पास के क्षेत्रों का ढांचागत विकास किया। नारायण दत्त जी के कार्यकाल में जो आवश्यक ढांचागत विकास हुआ था उसके बाद ढांचागत विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जितने भी फ्लाई ओवर बने सब 2014-15, 16 में बने, जिसमें मोहकमपुर का फ्लाई ओवर भी सम्मिलित है, भंडारी बाग की वित्तीय आदि स्वीकृतियां सब उसी समय में हुई। अंडरपास और फ्लावर, दोनों को बनाने का निर्णय उसी कालखंड में हुआ। खेल इंफ्रास्ट्रक्चर भी उस समय व्यापक रूप से डेवलप किए गए, मालसी डियर पार्क को जू के रूप में विकसित किया गया, मसूरी के लिए रोपवे जो अब भी प्रारंभ नहीं हो पाई है उसका शिलान्यास भी उसी कालखंड में हुआ और देहरादून-मसूरी रोड का व्यवस्थित चौड़ीकरण भी हमने प्रारंभ किया और वैकल्पिक मार्गों को जिनमें सहस्त्रधारा से आगे धनोल्टी के लिए दूसरे मार्ग भी जो है मसूरी के लिए प्रारंभ करवाये गये। देहरादून के अंदर आंतरिक मार्गों के सुधार में चाहे टर्नर रोड का मार्ग हो, चाहे रायपुर से होकर के मसूरी के लिए निकलने वाला वैकल्पिक मार्ग हो या अन्य मार्गों का सुधार हो। मुझे तकलीफ है कि जिस रिवर फ्रेंट डेवलपमेंट का काम हमने रिस्पना से प्रारंभ किया था वह आगे नहीं बढ़ पाया। मेट्रो के निर्माण को लोगों ने अच्छा गपशप का विषय बना दिया है, जबकि हमारी सरकार मेट्रो कॉरपोरेशन का गठन और एमडी का चयन करके गये थी, मुझे इस बात का भी दुःख है कि हमने देहरादून के लिए जिस वैकल्पिक सिटी का प्लान चाय बागान क्षेत्र में योजना बनाकर तय किया था।
हरदा ने बताई अपनी कमजोरी
मैं अपने पर्यावरण विद् मित्रों के सवाल उठाने के बाद उसको आगे नहीं बढ़ा पाया और मैं आज भी मानता हूं कि वह मेरी बड़ी कमजोरी रही कि मैंने एक वेल डेवलप्ड आइडिया जिस कि सारी तैयारियां मुकम्मल तौर पर कर ली गई थी, यहां तक की केंद्र सरकार से धन नहीं भी मिलता तो भी हम उसको स्ववित्त पोषित तरीके से भी आगे बढ़ा सकते थे, उस योजना को मैंने आगे बढ़ाने का विचार उस समय टाल दिया और अब देहरादून के अंदर लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया इन दशकों के अंदर, परिवार भी बढ़ गए, नए लोग भी आ गए, उनकी आवश्यकताएं भी बढ़ गई लेकिन जमीन तो उतनी ही देहरादून में है न? जो पुराना देहरादून है उसी देहरादून में यह सब कुछ हो रहा है और उसी के आड़ में एमडीडीए भी चांदी काट रही है, कुछ और लोग भी चांदी काट रहे हैं, लेकिन देहरादून घुट रहा है, देहरादून को यदि आगे घुटन से बचाना है तो उसके लिए एक नया देहरादून प्रस्तावित करना पड़ेगा, हम नहीं कर पाए, हम केवल मलाल करते रहेंगे, मगर जो आज कर देंगे इस वैकल्पिक देहरादून की कल्पना को धरती पर ले आएंगे लोग उनको याद करेंगे, क्योंकि उसके अलावा देहरादून को भविष्य के ट्रैफिक जाम से और बहुत ही कष्टपूर्ण ट्रैफिक जाम से बचाने का कोई और उपाय मुझे नजर नहीं आ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर का प्लान जरूर करना चाहिए और उस पर भी काम होना चाहिए, बड़ा अफसोस यह है कि साढ़े सात साल से भी ज्यादा का वक्त हो गया है, 2017 में सत्ता परिवर्तनके बाद तब से देहरादून के अंदर कोई भी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप नहीं हुआ, स्मार्ट सिटी के नाम से हुई रिक्टोफिटिंग पुराने शहर की ठोक-पीठ है, इससे देहरादून की समस्या का समाधान नहीं होता है। लेकिन मैं इतना जरुर कहना चाहता हूं कि देहरादून को भविष्य में घुटनपूर्ण जीवन से बचाने के लिए अभी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ-साथ एक नये देहरादून को बसाने की कल्पना होनी चाहिए। जहां लोग अपनी संपत्ति को इन्वेस्ट कर सकें, एक सुंदर देहरादून बन सके और अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं को बढ़ते हुए परिवारों की आवश्यकताओं को उनके आज के स्टेट्स के अनुसार विकसित कर सकें। लेकिन मैं इतना खबरदार कर देना चाहता हूं कि यह जो वैकल्पिक देहरादून है, उसको आप डोईवाला आदि के कृषि क्षेत्र में करेंगे तो इसका दुष्परिणाम सारे उत्तराखंड को भुगतना पड़ेगा, आपको उसके लिए बहुत कल्पनाशील होना पड़ेगा, हमने वह कल्पनाशीलता का उपयोग किया था और हम बहुत सुविचारित तरीके से चाय बागान क्षेत्र में अपनी कल्पना को साकार होता देखना चाहते थे, लेकिन जो नहीं हो सका उसके लिए मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता हूं। मगर जिस सरकार के कार्यकाल में भी नया देहरादून बनेगा वह अवश्य प्रशंसा पाएगी। हल्द्वानी, देहरादून, ऋषिकेश का ट्रैफिक जाम बढ़ता जा रहा है और स्थिति बिगड़े इससे पहले समाधान ढूंढना चाहिए।
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